पयाम-ए-उल्फ़त मिला तो होगा , न आने का कुछ बहाना होगा
मेरी अक़ीदत में क्या कमी थी ,सबब ये तुम को बताना होगा
जो एक पल की ख़ता हुई थी ,वो ऐसा कोई गुनाह कब थी ?
नज़र से तुमने गिरा दिया है , तुम्ही को आ कर उठाना होगा
ख़ुदा के बदले सनमपरस्ती , ये कुफ़्र है या कि बन्दगी है
जुनून-ए-हक़ में ख़बर न होगी, ज़रूर कोई दिवाना होगा
मेरी मुहब्बत है पाक दामन ,रह-ए-मुक़द्दस में नूर -अफ़्शाँ
तो फिर ये परदा है किस की खातिर ,निकाब रुख़ से हटाना होगा
इधर हैं मन्दिर ,उधर मसाजिद ,कहीं किलीसा की चार बातें
सभी की राहें जो मुख़्तलिफ़ हैं ,तो कैसे यकसाँ ? बताना होगा
कहीं थे काँटे ,कभी था सहरा ,कहीं पे दरिया , कहीं था तूफ़ाँ
कहाँ कहाँ से नहीं हूँ गुज़रा ,ये राज़ तुम ने न जाना होगा
रहीन-ए-मिन्नत रहूँगा उस का ,कभी वो गुज़रे अगर इधर से
अज़ल से हूँ मुन्तज़िर मैं ’आनन’, न आयेगा वो, न आना होगा
-आनन्द.पाठक-
09413395592
शब्दार्थ
प्याम-ए-उल्फ़त = प्रेम सन्देश
अक़ीदत = श्रद्धा /विश्वास
सबब = कारण
कुफ़्र = एक ईश्वर को न मानना,मूर्ति पूजा करने वाला
इसी से लफ़्ज़ से ;काफ़िर; बना
रह-ए-मुक़्द्दस में= पवित्र मार्ग मे
नूर-अफ़्शाँ = ज्योति/प्रकाश बिखेरती हुई
किलीसा = चर्च ,गिरिजाघर
मसाजिद =मस्जिदें [ मसजिद का बहुवचन]
मुख़्तलिफ़ -अलग अलग
यकसाँ =एक सा .एक समान
अज़ल से = अनादिकाल से
रहीन-ए-मिन्नत=आभारी .ऋणी
मुन्तज़िर = प्रतीक्षारत
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