अमरबेल सी नहीं ज़िन्दगी, खिलती है मुरझाती है
कभी ग़मों से आँख मिलाती, खुशियों संग मुस्काती है
उम्मीदों का ताना बाना, खुद ही बुनती जाती है
ख़ामोशी में दिन कटता है, सपनों संग बतियाती है
दुनिया जैसे रंगमंच हो, अभिनय भी करवाती है
खुद को शाबाशी है देती, खुद पे ही खिसियति है
असमंजस का जाल है बुनती, खुद ही फंसती जाती है
तजुर्बे तब सारे लगा कर, बुजुर्गों सा समझती है
अद्भुत है अविराम ज़िन्दगी, संगीत सी बहती जाती है
रंग बिरंगे कई रूपों से, जीना हमें सिखाती है
अमरबेल सी नहीं ज़िन्दगी, खिलती है मुरझाती है
उम्मीदों का ताना बाना, खुद ही बुनती जाती है
ख़ामोशी में दिन कटता है, सपनों संग बतियाती है
दुनिया जैसे रंगमंच हो, अभिनय भी करवाती है
खुद को शाबाशी है देती, खुद पे ही खिसियति है
असमंजस का जाल है बुनती, खुद ही फंसती जाती है
तजुर्बे तब सारे लगा कर, बुजुर्गों सा समझती है
अद्भुत है अविराम ज़िन्दगी, संगीत सी बहती जाती है
रंग बिरंगे कई रूपों से, जीना हमें सिखाती है
अमरबेल सी नहीं ज़िन्दगी, खिलती है मुरझाती है
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