एक ग़ैर रवायती ग़म-ए-दौरां की ग़ज़ल......
कहाँ तक रोकता दिल को कि जब होता दिवाना है
ज़माने से बगावत है , नया आलम बसाना है
मशालें इल्म की लेकर चले थे रोशनी करने
अरे ! क्या हो गया तुमको कि अपना घर जलाना है ?
यूँ जिनके शह पे कल तुमने एलान-ए-जंग कर दी थी
कि उनका एक ही मक़सद ,तुम्हें मोहरा बनाना है
धुँआ आँगन से उठता है तो अपना दम भी घुटता है
तुम्हारा शौक़ है या साज़िशों का ताना-बाना है
लगा कर आग नफ़रत की सियासी रोटियाँ सेंको
अभी तक ख़्वाब में खोए ,हमें उनको जगाना है
-" शहीदों की चिताऒं पर लगेंगे हर बरस मेले "-
यहाँ की धूल पावन है , तिलक माथे लगाना है
तुम्हारे बाज़ुओं में दम है कितना ,देख ली ’ आनन’
हमारे बाजुओं का ज़ोर अब तुमको दिखाना है
-आनन्द.पाठक-
094133 95592
कहाँ तक रोकता दिल को कि जब होता दिवाना है
ज़माने से बगावत है , नया आलम बसाना है
मशालें इल्म की लेकर चले थे रोशनी करने
अरे ! क्या हो गया तुमको कि अपना घर जलाना है ?
यूँ जिनके शह पे कल तुमने एलान-ए-जंग कर दी थी
कि उनका एक ही मक़सद ,तुम्हें मोहरा बनाना है
धुँआ आँगन से उठता है तो अपना दम भी घुटता है
तुम्हारा शौक़ है या साज़िशों का ताना-बाना है
लगा कर आग नफ़रत की सियासी रोटियाँ सेंको
अभी तक ख़्वाब में खोए ,हमें उनको जगाना है
-" शहीदों की चिताऒं पर लगेंगे हर बरस मेले "-
यहाँ की धूल पावन है , तिलक माथे लगाना है
तुम्हारे बाज़ुओं में दम है कितना ,देख ली ’ आनन’
हमारे बाजुओं का ज़ोर अब तुमको दिखाना है
-आनन्द.पाठक-
094133 95592
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें