ऐसे भी न बीत सके
कभी किसी के साल
रीते रीते नयना हो
और भीगे भीगे गाल
पेड़ों को जब जब बढ़ना हो
और शाखों को चढ़ना हो
पत्ता पत्ता टूट गिरे
होवे न ऐसी डाल
जीवन का जो झरना हो
उसको कलकल जब बहना हो
राह में रोड़े डाल कोई भी
बदले न उसकी चाल
सफ़र में उमर भर रहना हो
दर्द फिर भी सहना हो
ज़ख़्म कुरेदे नमक छिड़क
पूछे कोई न किसी का हाल
ऋण सांसों का भरना हो
किश्तों में मरकर जीना हो
कैसा होगा वो ऋणानुबंधन
आए जब न फिर भी काल !!
मैं जिन्दगी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें