चन्द माहिए
1
दिन भर का थका होगा,
कुछ न हुआ हासिल
दुनिया से ख़फ़ा होगा।
2
अब लौट के है जाना,
एक भरम था जग,
उसको ही सच माना।
3
जब जाना है, बन्दे!
अब तो काट ज़रा,
माया के सब फन्दे।
4
तुम को न भरोसा है,
कोई है दिल में,
मिलने को रोता है।
5
इक मेरी मायूसी,
उस पर दुनिया की,
दिन भर कानाफ़ूसी।
-आनन्द.पाठक-
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