चन्द माहिया
:1:
दीदार न हो जब तक
यूँ ही रहे चढ़ता
उतरे न नशा तब तक
:2:
ये इश्क़ सदाकत है
खेल नहीं , साहिब !
इक तर्ज़-ए-इबादत है
:3:
बस एक झलक पाना
मा’नी होता है
इक उम्र गुज़र जाना
:4:
अपनी पहचान नहीं
ढूँढ रहा बाहर
भीतर का ध्यान नहीं
:5:
जब तक मैं हूँ ,तुम हो
कैसे कह दूँ मैं
तुम मुझ में ही गुम हो
-आनन्द.पाठक---