माहिया : क़िस्त 24
:1:
ये इश्क़,ये कूच-ए-दिल
दिखने में आसाँ
जीना ही बहुत मुश्किल
:2:
दिल क्या चाहे जानो
मैं न बुरा मानू
तुम भी न बुरा मानो
:3:
सच कितना हसीं हो तुम
चाँद किधर देखूं
ख़ुद माहजबीं हो तुम
:4:
जाड़े की धूप सी तुम
मखमली छुवन सी
लगती हो रूपसी तुम
:5:
फिर लौट गया बादल
बिन बरसे घर से
भींगा न मिरा आंचल
-आनन्द पाठक
09413395592
:1:
ये इश्क़,ये कूच-ए-दिल
दिखने में आसाँ
जीना ही बहुत मुश्किल
:2:
दिल क्या चाहे जानो
मैं न बुरा मानू
तुम भी न बुरा मानो
:3:
सच कितना हसीं हो तुम
चाँद किधर देखूं
ख़ुद माहजबीं हो तुम
:4:
जाड़े की धूप सी तुम
मखमली छुवन सी
लगती हो रूपसी तुम
:5:
फिर लौट गया बादल
बिन बरसे घर से
भींगा न मिरा आंचल
-आनन्द पाठक
09413395592
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