जब भी मिला दरिया
मिला सागर नहीं आता
उसे देखा नहीं लेकिन
दिल में रहा तो था
सफर में कहीं वो मील
का पत्थर नहीं आता
सुनता हूॅ खुदा मेरा
फलक पर है जमाने से
वह क्यों मेरे सामने
उतरकर नहीं आता
ऐ आदमी इस जहाॅ में
खून न कर अब
पता है आदमी फिर कभी
मरकर नहीं आता
जो औरों को दीये फिरते
तोअफा भलाई का
कालीन मिलते हैं कभी
कंकड़़ नहीं आता
मंजिल के तरफ तू खुद
चल मेरे साथी
मुकद्दर है, मुकद्दर किसी के घर
नहीं आता
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