चन्द माहिया : क़िस्त 40
:1:
जीवन की निशानी है
रमता जोगी है
और बहता पानी है
;2:
मथुरा या काशी क्या
मन ही नहीं चमका
घट क्या ,घटवासी क्या
:3:
ख़ुद को देखा होता
मन के दरपन में
क्या सच है ,पता होता
:4:
बेताब न हो , ऎ दिल !
सोज़-ए-जिगर तो जगा
फिर जा कर उन से मिल
:5;
ये इश्क़ इबादत है
दैर-ओ-हरम दिल में
और एक ज़ियारत है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
सोज़-ए-जिगर = अन्त: की अग्नि
:1:
जीवन की निशानी है
रमता जोगी है
और बहता पानी है
;2:
मथुरा या काशी क्या
मन ही नहीं चमका
घट क्या ,घटवासी क्या
:3:
ख़ुद को देखा होता
मन के दरपन में
क्या सच है ,पता होता
:4:
बेताब न हो , ऎ दिल !
सोज़-ए-जिगर तो जगा
फिर जा कर उन से मिल
:5;
ये इश्क़ इबादत है
दैर-ओ-हरम दिल में
और एक ज़ियारत है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
सोज़-ए-जिगर = अन्त: की अग्नि
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-05-2017) को
जवाब देंहटाएंमैया तो पाला करे, रविकर श्रवण कुमार; चर्चामंच 2635
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanyavaad aap ka
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