ज्वालादेवी से धर्मशाला (Jwaladevi to Dharamshala)
कल पूरे दिन के सफर की थकान और बिना खाये पूरे दिन रहने के बाद रात को खाना खाने के बाद जो नींद आयी वो एक ही बार 4:30 बजे मोबाइल में अलार्म बजने के साथ ही खुला। बिस्तर से उठकर जल्दी से मैं नहाने की तैयारी में लग गया। फटाफट नहा-धोकर तैयार हुआ और सारा सामान पैक किया। इतना करते करते 5 :30 बज गए। अब कल की योजना के मुताबिक एक बार फिर माँ ज्वालादेवी के दर्शन के लिए चल दिया। बाहर घुप्प अँधेरा था। इक्का-दुक्का लोग ही मंदिर के रास्ते पर मिल रहे थे। कुछ देर में हम मंदिर पहुँच गए। यहाँ मुश्किल से इस समय 25 -30 लोग ही थी। अभी मंदिर खुलने में कुछ समय था। कुछ देर में आरती आरम्भ हो गयी। आरती समाप्त होते होते मेरे पीछे करीब 300 से 400 लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (01-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी
हटाएंमुझे अपार ख़ुशी हो रही है कि आपने मेरे पोस्ट को इस लायक समझा
आपका हार्दिक धन्यवाद