चन्द माहिया :क़िस्त 42
:1:
दो चार क़दम चल कर
छोड़ तो ना दोगे ?
सपना बन कर ,छल कर
:2:
जब तुम ही नहीं हमदम
सांसे भी कब तक
अब देगी साथ ,सनम !
:3:
जज्बात की सच्चाई
नापोगे कैसे ?
इस दिल की गहराई
:4;
सबसे है रज़ामन्दी
सबसे मिलते हो
बस मुझ पर पाबन्दी
:5:
क्या और तवाफ़ करूँ
इतना ही जाना
मन को भी साफ़ करूँ
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
तवाफ़ = परिक्रमा करना
:1:
दो चार क़दम चल कर
छोड़ तो ना दोगे ?
सपना बन कर ,छल कर
:2:
जब तुम ही नहीं हमदम
सांसे भी कब तक
अब देगी साथ ,सनम !
:3:
जज्बात की सच्चाई
नापोगे कैसे ?
इस दिल की गहराई
:4;
सबसे है रज़ामन्दी
सबसे मिलते हो
बस मुझ पर पाबन्दी
:5:
क्या और तवाफ़ करूँ
इतना ही जाना
मन को भी साफ़ करूँ
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
तवाफ़ = परिक्रमा करना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-06-2016) को "हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी" (चर्चा अंक-2649) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut Bahut Dhanyavaad aap ka
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