गजल
आँख मेरी भले अश्क से नम नहीं
दर्द मेरा मगर आप से कम नहीं
ये चिराग-ए-मुहब्बत बुझा दे मेरा
आँधियों मे अभी तक है वो दम नहीं
इन्कलाबी हवा हो अगर पुर असर
कौन कहता है बदलेगा मौसम नहीं
पेश वो भी खिराज़-ए-अक़ीदत किए
जिनकी आँखों मे पसरा था मातम नहीं
एक तनहा सफर में रहा उम्र भर
हम ज़ुबाँ भी नही कोई हमदम नहीं
तन इसी ठौर है मन कहीं और है
क्या करूँ मन ही काबू में,जानम नहीं
ये तमाशा अब 'आनन' बहुत हो चुका
सच बता, सर गुनाहों से क्या ख़म नहीं?
-आनन्द पाठक-