चन्द माहिया [सावन पे ] : क़िस्त 51
:1:
सावन की घटा काली
याद दिलाती है
वो शाम जो मतवाली
:2:
सावन के वो झूले
झूले थे हम तुम
कैसे कोई भूले
:3:
सावन की फुहारों से
जलता है तन-मन
जैसे अंगारों से
;4:
आएगी कब गोरी ?
पूछ रही मुझ से
मन्दिर की बँधी डोरी
:5:
क्या जानू किस कारन ?
सावन भी बीता
आए न अभी साजन
-आनन्द.पाठक-
:1:
सावन की घटा काली
याद दिलाती है
वो शाम जो मतवाली
:2:
सावन के वो झूले
झूले थे हम तुम
कैसे कोई भूले
:3:
सावन की फुहारों से
जलता है तन-मन
जैसे अंगारों से
;4:
आएगी कब गोरी ?
पूछ रही मुझ से
मन्दिर की बँधी डोरी
:5:
क्या जानू किस कारन ?
सावन भी बीता
आए न अभी साजन
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-08-2018) को "कर्तव्यों के बिन नहीं, मिलते हैं अधिकार" (चर्चा अंक-3059) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ji Bahut Bahut Dhanyvaad--aap ka
हटाएंsaadar