चन्द माहिया : क़िस्त 59
:1:
सब क़स्में खाते हैं
कौन निभाता है
कहने की बाते हैं
:2:
क्या हुस्न निखारा है
जब से डूबा मन
उबरा न दुबारा है
:3:
इतना न सता माहिया
क्या थी ख़ता मेरी
सच,कुछ तो बता माहिया
:4:
बेदाग़ चुनरिया में
दाग़ लगा बैठे
आकर इस दुनिया में
:5:
धरती रह रह तरसी
बदली आई तो
आ कर भी नहीं बरसी
-आनन्द.पाठक-
:1:
सब क़स्में खाते हैं
कौन निभाता है
कहने की बाते हैं
:2:
क्या हुस्न निखारा है
जब से डूबा मन
उबरा न दुबारा है
:3:
इतना न सता माहिया
क्या थी ख़ता मेरी
सच,कुछ तो बता माहिया
:4:
बेदाग़ चुनरिया में
दाग़ लगा बैठे
आकर इस दुनिया में
:5:
धरती रह रह तरसी
बदली आई तो
आ कर भी नहीं बरसी
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-06-2019) को "पितृत्व की छाँव" (चर्चा अंक- 3369) (चर्चा अंक- 3362) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पिता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'