एक ग़ज़ल : जब भी ये प्राण निकले---
जब भी ये प्राण निकलें ,पीड़ा मेरी घनी हो
इक हाथ पुस्तिका हो .इक हाथ लेखनी हो
सूली पे रोज़ चढ़ कर ,ज़िन्दा रहा हूँ कैसे
आएँ कभी जो घर पर,यह रीति सीखनी हो
हर दौर में रही है ,सच-झूठ की लड़ाई
तुम ’सच’ का साथ देना,जब झूठ से ठनी हो
बेचैनियाँ हों दिल में ,दुनिया के हों मसाइल
याँ मैकदे में आना .खुद से न जब बनी हो
नफ़रत से क्या मिला है, बस तीरगी मिली है
दिल में हो प्यार सबसे , राहों में रोशनी हो
चाहत यही रहेगी ,घर घर में हो दिवाली
जुल्मत न हो कहीं पर ,न अपनों से दुश्मनी हो
माना कि है फ़क़ीरी ,फिर भी बहुत है दिल में
’आनन’ से बाँट लेना , उल्फ़त जो बाँटनी हो
-आनन्द.पाठक-
जब भी ये प्राण निकलें ,पीड़ा मेरी घनी हो
इक हाथ पुस्तिका हो .इक हाथ लेखनी हो
सूली पे रोज़ चढ़ कर ,ज़िन्दा रहा हूँ कैसे
आएँ कभी जो घर पर,यह रीति सीखनी हो
हर दौर में रही है ,सच-झूठ की लड़ाई
तुम ’सच’ का साथ देना,जब झूठ से ठनी हो
बेचैनियाँ हों दिल में ,दुनिया के हों मसाइल
याँ मैकदे में आना .खुद से न जब बनी हो
नफ़रत से क्या मिला है, बस तीरगी मिली है
दिल में हो प्यार सबसे , राहों में रोशनी हो
चाहत यही रहेगी ,घर घर में हो दिवाली
जुल्मत न हो कहीं पर ,न अपनों से दुश्मनी हो
माना कि है फ़क़ीरी ,फिर भी बहुत है दिल में
’आनन’ से बाँट लेना , उल्फ़त जो बाँटनी हो
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-06-2019) को "धरती का पारा" (चर्चा अंक- 3361) (चर्चा अंक-3305) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Dhanyavaad aap ka
हटाएंsaadar
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंThanks for sharing this valuable information with us.
जवाब देंहटाएंmobile hack kaise kare