नादां है बहुत
कोई समझाये दिल को
चाहता उड़ना आसमाँ में
है पड़ी पांव ज़ंजीर
कट चुके हैं पंख
फिर भी उड़ने की आस
..
नादां है बहुत
कोई समझाये दिल को
डगमगा रही नौका बीच भंवर
फिर भी लहरों से
जुझने को तैयार
परवाह नहीं डूबने की
मर मिटने को तैयार
नहीं मानता दिल यह समझाने से भी
जब तक है साँस, रहेगी आस तब तक
है संघर्ष ही जीवन
अंतिम क्षण आने तक
रेखा जोशी