मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

सोमवार, 30 मार्च 2020

एक ग़ज़ल : गर्द दिल से अगर--

एक ग़ज़ल : गर्द दिल से अगर--

गर्द दिल से अगर उतर जाए
ज़िन्दगी और भी  निखर जाए

कोई दिखता नहीं  सिवा तेरे
दूर तक जब मेरी नज़र जाए

तुम पुकारो अगर मुहब्बत से
दिल का क्या है ,वहीं ठहर जाए

डूब जाऊँ तेरी निगाहों में
यह भी चाहत कहीं न मर जाए

एक हसरत तमाम उम्र रही
मेरी तुहमत न उसके सर जाए

ज़िन्दगी भर हमारे साथ रहा
आख़िरी वक़्त ग़म किधर जाए

वो मिलेगा तुझे ज़रूर ’आनन’
एक ही राह से अगर जाए

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

दोहे "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

--
रंग-मंच है जिन्दगी, अभिनय करते लोग।
नाटक के इस खेल में, है संयोग-वियोग।।
--
विद्यालय में पढ़ रहे, सभी तरह के छात्र।
विद्या के होते नहीं, अधिकारी सब पात्र।।
--
आपाधापी हर जगह, सभी जगह सरपञ्च।।
रंग-मंच के क्षेत्र में, भी है खूब प्रपञ्च।।
--
रंग-मंच भी बन गया, जीवन का जंजाल।
भोली चिड़ियों के लिए, जहाँ बिछे हैं जाल।।
--
रंग-मंच का आजकल, मिटने लगा रिवाज।
मोबाइल से जाल पर, उलझा हुआ समाज।।
--
कहीं नहीं अब तो रहे, सुथरे-सज्जित मञ्च।
सभी जगह बैठे हुए, गिद्ध बने सरपञ्च।।
--
नहीं रहे अब गीत वो, नहीं रहा संगीत।
रंग-मंच के दिवस की, मना रहे हम रीत।।
--

मंगलवार, 17 मार्च 2020

एक व्यंग्य

एक व्यंग्य : तालाब--मेढक---- मछलियाँ

गाँव में तालाब । तालाब में मेढकऔर मछलियाँ ।और मगरमच्छ भी । गाँव क्या ? "मेरा गाँव मेरा देश ’ही समझ लीजिए।
मछलियों ने मेढकों को वोट दिया और ’अलाना’ पार्टी बहुमत के पास पहुँचते पहुँचते रह गई । गोया

क़िस्मत की देखो ख़ूबी ,टूटी कहाँ कमंद
दो-चार हाथ जब कि लब-ए-बाम रह गया

इसमें क़िस्मत की ख़ूबी क्या देखना ,बदक़िस्मती ही समझिए बस।

नतीज़ा यह हुआ कि ”फ़लाना पार्टी’ ने सरकार बना ली } मछलियों ने चैन की साँस ली कि अब तालाब में नंगे आदमियों का नंगा नहाना बन्द हो जाएगा।अतिक्रमण बन्द हो जायेगा। तालाब का गंदा पानी बदल जायेगा।
मछलियाँ भोली थीं।
तालाब दो भागों में बँट गया । बायाँ भाग अलाना पार्टी की--दायाँ भाग फ़लाना पार्टी की ।मगरमच्छों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वो इधर भी थे ,उधर भी थे । अबाध गति से इधर से उधर आते जाते रहते थे । दोनों पार्टियों की ज़रूरत थी इनकी -मछलियों को समझाने,बुझाने और धमकाने के लिए।
’अलाना’ पार्टी को यह मलाल कि इस तालाब में ’ईवीएम’ मशीन का इस्तेमाल क्यों नहीं हुआ।.वरनाअपने हार का ठीकरा उसी के सर फ़ोड़ते।उससे ज़्यादा मलाल यह था कि फ़लाना पार्टी के मेढक सब मज़े उड़ाएँगे ,मलाई खाएँगे और माल बनाएँगे । और हम ? हम इधर बस लार टपकाएँगे ,टापते रह जाएँगे।नहीं ,नहीं यह नहीं हो सकता । और उसी दिन से अलाना पार्टी वाले ,फ़लाना पार्टी वालों को गिराने की जुगत में भिड़ गए।
जाड़े की गुनगुनी धूप --
दाहिने वाले भाग के कुछ मेढक ’छपक-छपाक’ करते ,बाएँ वाले भाग में आ गए। तालाब के पानी में हलचल होने लगी।बाएँ वालों ने खूब स्वागत भाव किया। अपना ही बन्दा है।.भटक गया था ।अपना ही ख़ून है।गुमराह कर दिया था उधरवालों ने इन बेचारों को । अब सही जगह आ गए हैं।
अब देखते हैं कि कैसे मलाई काटते हैं उधर वाले।
मछलियों नें ’छपक-छ्पाक’ मेढको से पूछ लिया -"तुम लोग इधर क्या कर रहे हो?
हम लोग धूप सेंकने आए है इधर । इधर की धूप ,उधर की धूप से ज़्यादा गुनगुनी है ’सुहानी है --मेढको ने एक साथ टर्र-टर्र करते हुए जवाब दिया।
अलाना पार्टी के ’मेढकाधीश’ को इस तरह की पूछताछ नागवार गुजरी और उन तमाम "छपक-छपाक’ मेढकों को तालाब के और गहराई में एक कोने में ले जा कर छुपा दिया जिसे वह ’रिसार्ट’ कहते थे ।
उधर फ़लाना पार्टी के ’मेढकाधिराज’ चिन्तित हो गए । टर्र टर्र करने लगे --यह मछलियों के जनादेश का अपमान है,तालाब का अपमान है ,हम इसे होने नहीं देंगे ।फिरअपने बाक़ी बचे तमाम मेढकों को बुलाया और बताया-कि उन लोगों के जाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । आप सब चिन्ता न करें ।हमने कुछ मगरमच्छों को काम पर लगा दिया है ।साम-दाम-दण्ड-भेद खरीद-फ़रोख़्त--जो लग जाए लगाकर उन सबको खींच कर लाएँगे।आप लोग वैसी ही मलाई खाते रहोगे । आप लोग तो अभी मेरे साथ चलें।"
और सभी मेढकों को लेकर तालाब के अतल गहराइयों एक कोने में ले जाकर छुपा दिया जिसे वह ’फ़ाइव स्टार’ होट्ल कहते थे।
ग्राम प्रधान साहब ने शोर मचाया-”यह सरासर धाँधली है।लोकतन्त्र की हत्या है।हम प्रहरी है ।हम ये हत्या नहीं होने देंगे।’-प्रधान जी की मान्यता थी कि चूँकि यह तालाब उनके ग्राम सभा की ज़मीन पर है अत: वह इसके प्रधान हुए। अपना चीख जारी रखते हुए कहा--" इन मेढकों की गिनती हम कराएँगे। संविधान नाम की कोई चीज़ होती है नहीं?
प्रधान जी ने आदेश दिया--पहले सभी मेढकों को अपने अपने ’रिसार्ट’ और ’फ़ाइव स्टार’ होटलों से निकाल कर यहाँ लाओ।हम गिनेंगे ।
सभी मेढक आ गए।मेढकाधीश ग्रुप के मेढक प्रधान जी के बाएँ बैठे और ’मेढकाधिराज’ ग्रुप के मेढक दाएँ बैठे।
प्रधान जी ने गिनना शुरु किया---एक--दो--तीन--चार । प्रधान जी अभी गिन ही रहे थे कि "बाएँ साइड" के चार मेढक ’छपक’ कर "दाएँ" चले गए और मेढकाधिराज के लोगों ने तालियाँ बजाई।लोकतन्त्र की विजय हो गई।
प्रधान जी ने फिर से गिनना शुरु किया --एक--दो--तीन--चार । प्रधान जी अभी गिन ही रहे थे कि दाएँ साइड के तीन मेढक छपाक से बाएँ साइड चलांग लगा दी। अब मेढकाधीश के लोगों ने तालियाँ बजाई । लोकतन्त्र ज़िन्दा हो गया।
प्रधान जी ने फिर से गिनना शुरु किया --एक--दो--तीन--चार । प्रधान जी अभी गिन ही रहे थे कि---
प्रधान जी फिर चीखे---’यह क्या तमाशा है । मछलियाँ सब देख रही हैं ।अगले बार चुनाव में जाना है कि नहीं--मछलियों को मुँह दिखाना है कि नहीं ? "
"5-साल बाद फिर उन्हें नए सपने दिखा देंगे मछलियों को । अभी तो हमें ’रिसार्ट’ और होटल में ऐश करने दें"---सभी मेढकों ने समवेत स्वर से कहा और हँसने लगे ।
-----------
मछलियाँ तमाशा देख रहीं है । मेढकों का इधर से उधर आना- जाना देख रहीं है। छपक-छपाक देख रहीं है । मछलियाँ आश्वस्त हैं । उन्हें जो करना था कर दिया--वोट दे दिया।

’कोऊ नॄप होऊ हमें का हानी
मछली छोड़ न होईब रानी ।

लोहिया जी की बात बेमानी लग रही है - ज़िन्दा क़ौमें 5-साल इन्तिज़ार नहीं करती ।

तालाब का पानी गन्दा हो चला है । दुष्यन्त कुमार जी ने पहले ही कहा था--

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं ।
=आनन्द.पाठक-

शनिवार, 14 मार्च 2020

एक ग़ज़ल : लगे दाग़ दामन पे--

ग़ज़ल : लगे दाग़ दामन पे--

लगे दाग़ दामन पे , जाओगी कैसे ?
बहाने भी क्या क्या ,बनाओगी कैसे ?

चिराग़-ए-मुहब्बत बुझा तो रही हो
मगर याद मेरी मिटाओगी कैसे ?

शराइत हज़ारों यहाँ ज़िन्दगी के
भला तुम अकेले निभाओगी कैसे ?

नहीं जो करोगी किसी पर भरोसा
तो अपनो को अपना बनाओगी कैसे ?

रह-ए-इश्क़ मैं सैकड़ों पेंच-ओ-ख़म है
गिरोगी तो ख़ुद को उठाओगी कैसे ?

कहीं हुस्न से इश्क़ टकरा गया तो
नज़र से नज़र फिर मिलाओगी कैसे ?

कभी छुप के रोना ,कभी छुप के हँसना
ज़माने से कब तक छुपाओगी कैसे ?

अगर पास में हो न ’आनन’ तुम्हारे
तो शाने पे सर को टिकाओगी कैसे ?

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

होली पर एक भोजपुरी गीत


होली पर एक ठे भोजपुरी गीत : होली पर....



कईसे मनाईब होली ? हो राजा !
कईसे मनाईब होली..ऽऽऽऽऽऽ

आवे केऽ कह गईला अजहूँ नऽ अईला
’एस्मेसवे’ भेजला ,नऽ पइसे पठऊला
पूछा न कईसे चलाइलऽ खरचा
अपने तऽ जा के,परदेसे रम गईला


कईसे सजाई रंगोली? हो राजा !
कईसे सजाई रंगोली,,ऽऽऽऽऽ


मईया के कम से कम लुग्गा तऽ चाही
’नन्हका’ छरिआईल बाऽ ,जूता तऽ चाही
मँहगाई अस मरलस कि आँटा बा गीला
’मुनिया’ कऽ कईसे अब लहँगा सिआई


कईसे सिआईं हम चोली ,हो राजा ! ?
कईसे सिआईं हम चोली ,,ऽऽऽऽऽऽऽ


’रमनथवा’ मारे लाऽ रह रह के बोली
’कलुआ’ मुँहझँऊसा करे लाऽ ठिठोली
पूछेलीं गुईयाँ ,सब सखियाँ ,सहेली
अईहें नऽ ’जीजा’ काऽ अब किओ होली?


खा लेबों ज़हरे कऽ गोली हो राजा
खा लेबों ज़हरे कऽ गोली..ऽऽऽऽऽ


अरे! कईसे मनाईब होली हो राजा ,कईसे मनाईब होली...


शब्दार्थ [असहज पाठकों के लिए]

एस्मेसवे’ ==S M S

लुग्गा = साड़ी

छरिआईल बा = जिद कर रहा है

मुँहझँऊसा = आप सब जानते होंगे [अर्थ अपनी श्रीमती जी से पूछ लीजियेगा]😀😀🙏🙏

-आनन्द.पाठक-