ग़ज़ल : लगे दाग़ दामन पे--
लगे दाग़ दामन पे , जाओगी कैसे ?
बहाने भी क्या क्या ,बनाओगी कैसे ?
चिराग़-ए-मुहब्बत बुझा तो रही हो
मगर याद मेरी मिटाओगी कैसे ?
शराइत हज़ारों यहाँ ज़िन्दगी के
भला तुम अकेले निभाओगी कैसे ?
नहीं जो करोगी किसी पर भरोसा
तो अपनो को अपना बनाओगी कैसे ?
रह-ए-इश्क़ मैं सैकड़ों पेंच-ओ-ख़म है
गिरोगी तो ख़ुद को उठाओगी कैसे ?
कहीं हुस्न से इश्क़ टकरा गया तो
नज़र से नज़र फिर मिलाओगी कैसे ?
कभी छुप के रोना ,कभी छुप के हँसना
ज़माने से कब तक छुपाओगी कैसे ?
अगर पास में हो न ’आनन’ तुम्हारे
तो शाने पे सर को टिकाओगी कैसे ?
-आनन्द.पाठक-
उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंShukriya aap kaa
जवाब देंहटाएंsaadar