--
रंग-मंच है जिन्दगी, अभिनय करते लोग।
नाटक के इस खेल में, है संयोग-वियोग।।
--
विद्यालय में पढ़ रहे, सभी तरह के छात्र।
विद्या के होते नहीं, अधिकारी सब पात्र।।
--
आपाधापी हर जगह, सभी जगह सरपञ्च।।
रंग-मंच के क्षेत्र में, भी है खूब प्रपञ्च।।
--
रंग-मंच भी बन गया, जीवन का जंजाल।
भोली चिड़ियों के लिए, जहाँ बिछे हैं जाल।।
--
रंग-मंच का आजकल, मिटने लगा रिवाज।
मोबाइल से जाल पर, उलझा हुआ समाज।।
--
कहीं नहीं अब तो रहे, सुथरे-सज्जित मञ्च।
सभी जगह बैठे हुए, गिद्ध बने सरपञ्च।।
--
नहीं रहे अब गीत वो, नहीं रहा संगीत।
रंग-मंच के दिवस की, मना रहे हम रीत।।
--
|
मित्रों! आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 27 मार्च 2020
दोहे "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा शनिवार(२८-०३-२०२०) को "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी"( चर्चाअंक -३६५४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत ही सुंदर दोहे ,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे
जवाब देंहटाएं