नोट- आज 14-सितम्बर-हिंदी दिवस। है । जो सरकारी विभाग में सेवारत हैं वह हिंदी की ’उपयोगिता ’ समझते होंगे।जो नहीं हैं हिंदी का ’महत्त्व’ समझते होंगे।
सभी हिंदी प्रेमियों को ,हिंदी सेवकों को हार्दिक बधाई । हिंदी एक सतत प्रवाहिनी सलिला गंगा है ।हम सबका दायित्व है कि ’हिंदी’ की अस्मिता ,शुचिता एवं स्वच्छता
बनाए रखें । और इसके विकास में हम सब अपना योगदान करें । सादर
-शेष अगले साल ।
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एक हास्य व्यंग्य : हिंदी पखवारा और मुख्य अतिथि
"अरे मिश्रा जी ! कहाँ भागते जा रहे हो भाई? "-आफिस की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए मिश्रा जी टकरा गए ।
’भई पाठक ! तुम में बस यही बुरी आदत है । प्रथमग्रासे मच्छिका पात:। मालूम नहीं कि आज से ’हिन्दी पखवारा" शुरू हो रहा है और सरकारी विभाग में हिन्दी पखवारा का क्या महत्व होता है ? मरने की फ़ुरसत नहीं होती "---मिश्रा जी ने अपना तात्कालिक और सामयिक महत्त्व बताया।
’अरे ’ ’मार कौन रहा है तुम्हें ?-’ मै ने सहानुभूति जताई ।
इसी बीच मिश्रा जी की हिंदी चेतना जग गई-" मरने" की बात कर रहा ’मरण’ की बात कर रहा ,हूँ मरण-मरण-- ’डाईंग’--’डाईंग- । ’मारने’ की बात नहीं कर रहा हूँ ’बीटिंग’ की नहीं ।’मरना’ अकर्मक क्रिया है --’मारना’ सकर्मक क्रिया है । मालूम भी है तुम्हें कुछ । मालूम भी कैसे होगा? "फ़ेसबुकिया" हिंदी से फ़ुरसत मिलेगी तब न ।उन्होने मुझे ’हिंदी’ अँगरेजी माध्यम से समझाई।
’अरे जाओ न महराज,मरो ’--मै ने अपना पीछा छुड़ाते हुए ,खिसकना ही उचित समझा।
मेरे पुराने पाठकगण ,मिश्रा जी से अवश्य परिचित होंगे। जो नहीं परिचित हैं ,उन्हें मिश्रा जी के बारे में संक्षेप में बता दूँ । मेरा सम्बन्ध मिश्रा जी से वही है जो किसी ज़माने में राजनारायण जी का चौधरी चरण सिंह से हुआ करता था , के0पी0 सक्सेना जी का किसी ’मिर्ज़ा’ से हुआ करता था या अमित शाह जी का मोदी जी से हुआ करता है। मिश्रा जी अति उत्साह में, जब कहीं ’लंका-दहन’ कर के आते हैं तब मुझे ही ’लप्पो-चप्पो’ कर के स्थिति सँभालनी पड़ती है।
मिश्रा जी ने सही कहा ।अबतक मैं ’फ़ेसबुकिया हिंदी ’को ही असली हिंदी समझ रहा था। शुद्ध हिन्दी समझ रहा था । मैं आत्म-चिन्तन में डूब गया । सरकारी विभाग में हिंदी-पखवारा के दौरान एक हिन्दी -अधिकारी का काम कितना बढ़ जाता है ।कितनी भाग -दौड़ करनी पड़ती है ।जाके पैर न फटी बिवाई ,सो क्या जाने पीर पराई। ।उनका जूता उनको कहाँ कहाँ काट रहा है, किसी को क्या मालूम !
1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।करोडो रुपए खर्च होते है हर साल । कितनी प्रगति हुई? हम कहाँ से कहाँ तक पहुँचे -पता नहीं? हाँ इतना पता है कि कुछ लोग जुगाड़ लगा कर हिंदी के नाम पर कहाँ से कहाँ पहुँच गए ।ऐसे वैसे लोग भी कभी सेमिनार के नाम पर,कभी वर्कशाप के नाम पर,कभी हिंदी के उत्थान के नाम पर समितियों में घुस गए अकादमी में घुस गए । भारत से अमेरिका तक, जापान तक ,रूस तक ,चाइना तक आते जाते रहते हैं -हिंदी का विस्तार करना है ।विश्वव्यापी बनाना है ।
उधर मिश्रा जी ने चिन्तन शुरू कर दिया। -आसान है क्या ’हिंदी-अधिकारी ’ का काम ।बड़े साहब का हिंदी में सन्देश लिखना ,स्वागत-भाषण लिखना, धन्यवाद प्रस्ताव लिखना, हिन्दी की क्या महत्त्व है -पर आलेख लिखना । सैकड़ों काम ।उदघाटन के लिए मुख्य-अतिथि चुनना ,पकड़ना और पकड़-धकड़ कर लाना ।और मुख्य-अतिथि चुनना भी आसान काम होता है क्या? बड़े-बड़े साहित्यकार तो पहले से ही बुक हो जाते है । शादी के मौसम में बैंड बाजा वालों को समय से ’बुक’ न करो तो बजाने वाले भी नहीं मिलते मौके से । नखरे ऊपर से।मुख्य अतिथि पकड़ने-धकड़ने में पिछली बार कितनी परेशानी हुई थी ।एक तथाकथित ठलुआ निठ्ठल्लुआ साहित्यकार के पास गया था। बैठा मख्खी मार रहा था । ’किसी हिंदी कविता कहानी ग्रुप का ’फ़ेसबुकिया एड्मिनिस्ट्रेटर’ था । हिंदी-ग्रुप के कुछ फ़ेसबुकिया संचालक भी अपने आपको हिंदी का "मूर्धन्य साहित्यकार’ मानता है और जो उसे नहीं मानते हैं , उन्हे वह ’लतिया’ देता है अपने ग्रुप से । वह अपने नाम के आगे ’कवि अलानवी ’, ..शायर फ़लानवी ,कथाकार ढेकानवी ,वरिष्ठ लेखक आदि लिख लेता है । ख़ुद ही मोर पंख लगा कर जंगल में नाचने लगता है ।और अपने ग्रुप पर ’अखिल भारतीय साहित्यकार चयन’ प्रतियोगिता करा कर प्रथम , द्वितीय ,तॄतीय पुरस्कार और सांत्वना पुरस्कार बाँटने लगता है । अंधा बाँटे रेवड़ी--फिर फिर अपने दे ।
ऎसे ही एक महानुभाव के पास .हिंदी-दिवस पर ’मुख्य अतिथि’ बनाने के लिए निमन्त्रित करने गया था ।
"भई मेरे पास ’मुख्य अतिथि’ बनने का टैम तो नहीं है । दसियों जगह से निमन्त्रण आए हैं ।आप ही बताएँ कहाँ कहाँ जाऊँ? आप तो मेरे ’रेगुलर क्लाईन्ट’ है, तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा ।डायरी देख कर बताता हूँ।"
भाई साहब ने अपनी डायरी देखी,माथे पर कुछ चिन्ता की लकीरें उभारी, कुछ मुँह बनाया,कुछ ओठ बिचकाया ,कभी चश्मा उतरा ,कभी चश्मा चढ़ाया और अन्त में प्रस्फुटित हुए--" मुश्किल है भाई साहब । टाइट प्रोग्राम है ।
मैं चिन्ताग्रस्त हो गया तो अगले पल उन्होने मेरी चिन्ता भी दूर कर दी।
"-बड़ी मुश्किल से किसी प्रकार एक-घंटा निकाल सकता हूँ आप के लिए।आप अपने जो ठहरे ।
मगर---
एक बार मैं फिर चिन्ताग्रस्त हो गया ।
-,भई मेरे पास गाड़ी नहीं है। हम सच्चे हिंदी-साहित्यकारों और उपासको के पास गाड़ी कहाँ से होगी ? आप को ही ले जाना ,ले आना पड़ेगा । हाँ ,बच्चों के लिए कुछ उपहार हो तो अच्छा ।यही बच्चे तो कल के मुख्य-अतिथि बनेंगे।हिंदी के भविष्य बनेंगे , हिंदी के वाहक बनेंगे। -’पत्रम-पुष्पम’ वाला लिफाफा ज़रा वज़नदार----- हें हें हें आप तो समझते ही होंगे ---।"-उन्होने अपने दाँत चियारे।
"सर ! यह कुछ ज़्यादा नहीं है ? इतना बजट नहीं है इस साल ’-मैने सरकारी असमर्थता जताई ।अब मैने अपने दाँत चियारे।
सरकारी विभाग में बज़ट की क्या कमी है ।आप चाहें तो--हें हें हें। तो आज ही उदघाटन करवा लो,फीता कटवा लो । सस्ते में कर दूँगा’--- हिंदी सेवा का उन्होने अपना व्यापारिक रूप दिखाया ।
’सर !’हिंदी दिवस’ आज नहीं है न ,वरना मैं आज ही -----।
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पितॄ-पक्ष में कौए पूजे जाते हैं । अच्छे-अच्छे पकवान खिलाये जाते है।तर्पण करते है । इस उमीद से कि पुरखे तर जाएंगे ।हिंदी-पखवारा में हिन्दी के ”तथाकथित’ साहित्यकार ही बुलाए जाते हैं।न जाने क्यों ? इस उमीद से कि हिंदी तर जायेगी । मान्यता है बस।
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अन्तत: जब कोई नहीं मिला तो थक हार कर उन्हीं महोदय को मोल भाव कर सौदा पटाया । -गाड़ी से आने-ले जाने की शर्त पर, सस्ते में मान गए ।
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हिंदी पखवारा का अन्तिम दिन । 14-सितम्बर।
सभागार भरा हुआ है । सरकारी अधिकारी मंच पर बैठ गए ।माला- फूल -हार पहना दिए गए । सरस्वती-वंदना हो गई । दीप-प्रज्ज्वलित कर दिया गया । उदघाटन हो गया-।
मुख्य अतिथि महोदय माइक पर आए और भाषण शुरु किया ।
"-- पहले मैं आप सभी का धन्यवाद कर दूँ कि आप ने इस पावन अवसर पर इस अकिंचन को याद किया ।-आप सब जानते हैं। आज ही के दिन हमारी हिंदी ---गाँधी जी ने कहा था अगर देश को एक सूत्र में कोई पिरो सकता है तो वह है हिंदी---नेहरू जी ने कहा था-----हिन्दी एक भावना है -एक कवि ने कहा है --जो भरा नहीं है भावों से ,जिसमें बहती रसधार नहीं , वो हृदय नहीं है पत्थर है-- ।हिंदी भारत माँ के भाल की बिंदी है------हिंदी को हमे हिमालय की ऊँचाइयों से भी ऊँचा ले जाना है----
" आज बात यहीं से शुरु करते हैं --हिन्दी पखवारा--’ उन्होने पीछे मुड़ कर दीवार पर टँगे हुए बैनर को देखते हुए कहा--" हिंदी-पखवारा। कभी आप ने ध्यान दिया कि यह शब्द कैसे बना? नहीं दिया न ? आज मैं बताता हूँ-- ’पखवारा ’- पक्षवार से बना है ।जैसे ’ईक्ष’ को "ईख’ बोलते हैं । अक्ष को आँख बोलते हैं यानी ’क्ष’ को ’ख’ बोलते है । पक्ष यानी 2-पक्ष - एक पक्ष--कॄष्ण पक्ष-दूसरा-शुक्ल पक्ष। अब तो लोग ’हिंदी-सप्ताह’ को भी हिंदी पखवारा बोलने लग गए हैं । कहीं कहीं कुछ लोग ’हिंदी-पखवाड़ा’ भी बोलते है ।कुछ जगह तो लोग -’ड़’- को भी -’र’ बोलते है जैसे "घोरा सरक पर पराक पराक दौर रहा है ’ ।यह किस प्रदेश की भाषा है यह न पूछियेगा । आप इस चक्कर में न पड़े कि पखवारा है कि पखवाड़ा-है । मगर --बैनर हमेशा वक्ता के पिछवाड़े ही टँगा रहता है। यानी वक़्ता आगे --हिंदी पीछे।
--तालियाँ बजने लगी । लोग वाह वाह करने लगे । क्या ज्ञान की बात कर रहा है बन्दा ।
उन्होने अपना भाषण जारी रखा।
"अन्त में । हिंदी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है---मैं पिछली बार जब अमेरिका गया था-तो लोगों का हिंदी प्रेम देख कर मन अभिभूत हो गया --अगर आप कभी ’ऎडीसन’ गए हों --’ऎडीसन’ न्यूजर्सी में है -तो आप को लगेगा कि आप फिर भारत में आ गए जैसे कि आप यू0पी0 में आ गए, बिहार में आ गए -वही संस्कृति वही हिंदी । उस से पहले मैं रूस गया था ।वहाँ भी हिंदी बोली जाती है--आवारा हूँ [मैं नहीं] -मेरा जूता है जापानी --मेरा दिल है हिन्दुस्तानी ---हिंदी सुन कर मेरा सिर श्रद्धा झुक गया हिन्दी के अगाध प्रेम के प्रति। जापान की बात तो खैर और है -। एक बार मै जापान गया था ।वहाँ के विश्वविद्यालय में आमन्त्रित था---
"अन्त में --. हमें हिंदी को आगे बढ़ाना है ।।हिंदी तो कब की मिट गई होती ..वह तो सरकार ने बचा रख्खा है -हम जैसों ने सँभाल रखा है --हिंदी पखवारा---हिंदी-सप्ताह के रूप में।आप लोग सरकारी अधिकारी हैं ,कर्मचारी है ...देश भिन्न भिन्न भाग से आए होंगे --कोई .तमिल’ से आया होगा --कोई कन्नड से -आया होगा कोई केरला से -। हिंदी बहुत ही सरल भाषा है । जिन भाइयों को हिंदी नही आती --घबराने की कोई बात नहीं --आप आफ़िस -नोटिंग में . फ़ाइल में कठिन अंगरेजी शब्दों को देवनागरी लिपि में लिख दें --बस हो गई हिंदी--
"और अन्त में -----
और अन्त में --और अन्त में --- कह्ते कहते एक घन्टे के बाद "अन्तियाए" और सभा समाप्त हो गई ।
हिन्दी दिवस मना लिया गया ।मुख्यालय को रिपोर्ट भेज दी गई ।हिंदी धन्य हो गई। हिन्दी का विस्तार हो गया,अगले साल तक।
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बड़े साहब-- ’ मिश्रा ! इस मुए को कहाँ से पकड़ के लाया था। इससे अच्छी हिन्दी तो मैं बोल सकता था।
मिश्रा जी -----’सर ! आप विभाग के ’मुख्य महाप्रबन्धक’ हैं। सम्मानित हैं ,ओहदे वाले है। आप हिंदी जैसी चीज़ के लिए ’मुख्य अतिथि ’कैसे बन सकते थे ?आप का सम्मान है - मिश्रा जी ने ’नवनीत लेपन ’[ अँगरेजी में बटरिंग] करते हुए कहा-"यह तो सस्ते में पट गया सर ! , सो पकड़ लाया। ’सस्ते’ में ’अच्छा’ भाषण दिया।
’या ,या ’ ओके--ओके टेक केयर -कह कर बड़े साहब ने अपने घर की राह ली।
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बाद में मालूम हुआ कि वह वक्ता भाई साहब जो ”दसियों निमन्त्रण’ की बात कर रहे थे वह अपना भाव बढ़ाने के लिए कर रहे थे ।और जो डायरी देख कर बताने की बात कर रहे थे वह उनका रोज़नामचा था ।वह देश-विदेश कहीं नहीं आते-जाते ।साल में एक बार अपने गाँव चले जाते या ससुराल चले जाते हैं और उसी को ’विदेश-यात्रा " कह कर उल्लेख करते रहते हैं ।यह रहस्य उनके एक दूसरे प्रतिद्वन्दी हिंदी सेवक भाई ने बताई,जो अबतक कहीं ’मुख्य अतिथि’ नहीं बन सके हैं
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मुख्य अतिथि महोदय के ’अंगरेजी के कठिन शब्दों को देवनागरी में लिखने वाले ’प्रवचन’ का तमिल --कन्नड़ -मलयालाम भाषा-भाषी भाइयों पर कितना प्रभाव पड़ा होगा ,मालूम नहीं ? ,मगर मिश्रा जी पर इसका काफी गहरा प्रभाव पड़ा ।
अगले दिन उन्होने ’हिंदी वर्जन विल फ़ालो" वाले एक अंगेरेजी सर्कुलर का हिन्दी अनुवाद कर अधीनस्थ कार्यालयों को यूँ भेंज दिया---
" टू द मैनेजर
प्लीज रेफ़र दिस आफिस लास्ट लेटर डेटेड----
आइ एम डाइरेक्टेड टू स्टेट दैट-------
नान कम्प्लाएन्स आफ़ द इनस्टरक्शन विल भी ट्रीटेड सीवीयर्ली--
हिंदी आफ़िसर
फ़लाना आफ़िस
अस्तु ।
-आनन्द पाठक-