पंचिक
पट्टी बाँधी राज माता भीष्म हुआ दरकिनार,
द्रौपदी की देखो फिर लज्जा हुई तार तार।
न्याय की वेदियों पर,
चलते बुलडोजर,
शेरों के घरों में जब जन्म लेते हैं सियार।।
*****
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
मित्रों! आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
पंचिक
पट्टी बाँधी राज माता भीष्म हुआ दरकिनार,
द्रौपदी की देखो फिर लज्जा हुई तार तार।
न्याय की वेदियों पर,
चलते बुलडोजर,
शेरों के घरों में जब जन्म लेते हैं सियार।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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