बरवै छंद "शिव स्तुति"
सदा सजे शीतल शशि, इनके माथ।
सुरसरिता सर सोहे, ऐसो नाथ।।
सुचिता से सेवत सब, है संसार।
हे शिव शंकर संकट, सब संहार।
आक धतूरा चढ़ते, घुटती भंग।
भूत गणों को हरदम, रखते संग।।
गले रखे लिपटा के, सदा भुजंग।
डमरू धारी बाबा, रहे मलंग।।
औघड़ दानी तुम हो, हर लो कष्ट।
दुख जीवन के सारे, कर दो नष्ट।।
करूँ समर्पित तुमको, सारे भाव।
दूर करो हे भोले, भव का दाव।।
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बरवै छंद विधान:-
यह बरवै दोहा भी कहलाता है। बरवै अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती हैं। विषम चरण के अंत में गुरु या दो लघु होने चाहिए। सम चरणों के अन्त में ताल यानि 2 1 होना आवश्यक है। मात्रा बाँट विषम चरण का 8+4 और सम चरण का 4+3 है। अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं। अठकल और चौकल के सभी नियम लगेंगे।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया