एक ग़ज़ल
आँकड़ों से हक़ीक़त छुपाना भी क्या !
रोज़ रंगीन सपने दिखाना भी क्या !
सोच में जब भरा हो धुआँ ही धुआँ,
उनसे सुनना भी क्या और सुनाना भी क्या !
वो जमीं के मसाइल न हल कर सके
चाँद पर इक महल का बनाना भी क्या !
बस्तियाँ जल के जब ख़ाक हो ही गईं,
बाद जलने के आना न आना भी क्या !
अब सियासत में बस गालियाँ रह गईं,
ऎसी तहजीब को आजमाना भी क्या !
चोर भी सर उठा कर हैं चलने लगे,
उनको क़ानून का ताज़ियाना भी क्या !
लाख दावे वो करते रहे साल भर,
उनके दावों का सच अब बताना भी क्या !
इस व्यवस्था में ’आनन’ कहाँ तू खड़ा ,
तेरा जीना भी क्या, तेरा जाना भी क्या !
-आनन्द.पाठक-
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जवाब देंहटाएंइस व्यवस्था में ’आनन’ कहाँ तू खड़ा ,
जवाब देंहटाएंतेरा जीना भी क्या, तेरा जाना भी क्या !
सभी दावों पर करारा प्रहार ..... और अंत में एक आम आदमी की मजबूरी ... बहुत खूब .
जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद--सादर
हटाएंव्यवस्था पर जोरदार तमाचा जड़ दिया
जवाब देंहटाएं्जी आभारी हूँ आप का--सादर
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-05-2021 ) को 'दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है' (चर्चा अंक 4075) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आप का बहुत बहुत धन्यावाद यादव जी
हटाएंसादर
एक एक शेर वास्तविकता के करीब।
जवाब देंहटाएंउम्दा सृजन।
वाह!
शुक्रिया आप का --सादर
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंइनायत आप की--सादर
हटाएंइस व्यवस्था में ’आनन’ कहाँ तू खड़ा ,
जवाब देंहटाएंतेरा जीना भी क्या, तेरा जाना भी क्या ! वाह बहुत खूब।
आभारी हूँ आप का शर्मा जी--सादर
हटाएंबहुत गहरा कटाक्ष
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत धन्यवाद -आप का--सादर
हटाएंआँकड़ों से हक़ीक़त छुपाना भी क्या !
जवाब देंहटाएंरोज़ रंगीन सपने दिखाना भी क्या !
.........जी बहुत बेहतरीन। काश गद्दी पे बैठे लोगो के पास ये बातें पहुंच जाए और वो समझ जाये।
जी दिल्ली ऊँचा सुनती है--चाहे वह बड़ी दिल्ली हो या छोटी दिल्ली
हटाएंआभार आप का--सादर
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जवाब देंहटाएंआपकी खूबसूरत गज़ल व्यवस्था पर करारा चोट है,सादर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का--सादर
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