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रविवार, 23 मई 2021

एक ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल 


आँकड़ों से हक़ीक़त छुपाना भी क्या !

रोज़ रंगीन सपने  दिखाना भी क्या !


सोच में जब भरा हो धुआँ ही धुआँ,

उनसे सुनना भी क्या और सुनाना भी क्या !


वो जमीं के मसाइल न हल कर सके

चाँद पर इक महल का बनाना भी क्या !


बस्तियाँ जल के जब ख़ाक हो ही गईं,

बाद जलने के आना न आना भी क्या !


अब सियासत में बस गालियाँ रह गईं,

ऎसी तहजीब को आजमाना भी क्या !


चोर भी सर उठा कर हैं चलने लगे,

उनको क़ानून का ताज़ियाना भी क्या !


लाख दावे वो करते रहे साल भर,

उनके दावों का सच अब बताना भी क्या !


इस व्यवस्था में ’आनन’ कहाँ तू खड़ा ,

तेरा जीना भी क्या, तेरा जाना भी क्या !


-आनन्द.पाठक-

ताज़ियाना = चाबुक .कोड़ा
मसाइल - मसले ,समस्याएँ

20 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. इस व्यवस्था में ’आनन’ कहाँ तू खड़ा ,

    तेरा जीना भी क्या, तेरा जाना भी क्या !


    सभी दावों पर करारा प्रहार ..... और अंत में एक आम आदमी की मजबूरी ... बहुत खूब .

    जवाब देंहटाएं
  3. व्यवस्था पर जोरदार तमाचा जड़ दिया

    जवाब देंहटाएं
  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-05-2021 ) को 'दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है' (चर्चा अंक 4075) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  5. एक एक शेर वास्तविकता के करीब।
    उम्दा सृजन।
    वाह!

    जवाब देंहटाएं
  6. इस व्यवस्था में ’आनन’ कहाँ तू खड़ा ,

    तेरा जीना भी क्या, तेरा जाना भी क्या ! वाह बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  7. आँकड़ों से हक़ीक़त छुपाना भी क्या !

    रोज़ रंगीन सपने दिखाना भी क्या !

    .........जी बहुत बेहतरीन। काश गद्दी पे बैठे लोगो के पास ये बातें पहुंच जाए और वो समझ जाये।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी दिल्ली ऊँचा सुनती है--चाहे वह बड़ी दिल्ली हो या छोटी दिल्ली
      आभार आप का--सादर

      हटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. आपकी खूबसूरत गज़ल व्यवस्था पर करारा चोट है,सादर शुभकामनाएं।

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