एक नगीने की तरह नायाब हो तुम
ज़िंदगी एक सहरा, शादाब हो तुम
दिलकश भी तुम दिलनाज़ भी तुम
हरदिल हो अजीज़, सरताज हो तुम
एक अरसे से कोई मुलाकात नहीं
किस बात पे हमसे नाराज़ हो तुम
हम तुमसे जुड़े जैसे रूह से' बदन
परिंदा है हम , परवाज़ हो तुम
सफ़र से है हम और सफ़र पे है हम
कि अंजाम ही तुम, आगाज़ हो तुम
बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंआभार रहेगा अनिता जी
हटाएंवाह!!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
आभार pammi जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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