तुम्हारे बिना भी चल ही रही है ज़िंदगी,
मैं जी रही हूँ, हँस रही हूँ, खा-पी भी रही हूँ,
पर कभी कभी ये मुझे रुला ही जाती है ।
बेटे बहुएँ बहुत ख़्याल रखते हैं मेरा
नाती पोते भी, कभी तो पूछ ही लेते हैं,
पर न जाने क्यों इन ऑंखों में फिर भी
नमी आ ही जाती है
जिन रास्तों पर हम तुम कभी चले थे साथ साथ
जब देखती हूं पेड़ पौधे, फूल और पंछी
क्या कहूँ ऑंखों में शबनम छा ही जाती है ।
वाह
जवाब देंहटाएंजब नीड़ में एक पंछी रह जाता है तब उसे कितना खलता है अकेलापन
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
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