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शनिवार, 16 मार्च 2024

अपनी अपनी सब ने कही है

 अपनी अपनी सबने कही है 

सब को लगता है वो सही है 


धुआं चिलम चिता और चिंता

आंखों से कब सब नदी बही है


कच्चे रिश्ते ,  कच्चे वादें 

कच्ची  जो हो, दीवार ढही है 


बेटे होंगे आंखों के तारें  

बिटिया पावन धाम खुद ही है 


काम क्रोध लोभ और माया 

क्यों हर जीवन का सार यही है 


पाप पुण्य का लेखा जोखा 

रब के पास सब खाता बही है 


छुप जाओ तुम चाहे ख़ुद से

'उसकी ' आंखें देख रही है



~संध्या

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