अपनी अपनी सबने कही है
सब को लगता है वो सही है
धुआं चिलम चिता और चिंता
आंखों से कब सब नदी बही है
कच्चे रिश्ते , कच्चे वादें
कच्ची जो हो, दीवार ढही है
बेटे होंगे आंखों के तारें
बिटिया पावन धाम खुद ही है
काम क्रोध लोभ और माया
क्यों हर जीवन का सार यही है
पाप पुण्य का लेखा जोखा
रब के पास सब खाता बही है
छुप जाओ तुम चाहे ख़ुद से
'उसकी ' आंखें देख रही है
~संध्या
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह ! सुंदर, सरल, सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर स्रजन 🙏
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