अनुभूतियाँ 03
01
रिश्ते नाते प्रेम नेह सब
शब्द बचे, निष्प्राण हुए हैं
जाने क्यों ऎसा लगता है
मतलब के उपमान हुए हैं
02
राजमहल है मेरी कुटिया
दुनिया से क्या लेना देना,
मन में हो सन्तोष अगर तो
काफी मुझ को चना चबेना
03
कतरा क़तरा आँसू मेरे
जीवन के मकरन्द बनेंगे
सागर से भी गहरे होंगे
पीड़ा से जब छन्द बनेंगे
04
सबके अपने अपने सपने
सब के अपने अपने ग़म हैं
एक नहीं तू ही दुनिया में
आँखें रहती जिसकी नम हैं
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को "कंकड़ देते कष्ट" (चर्चा अंक- 3963) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
31/01/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
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