एक व्यंग्य : ---’टैग करने वालों से’
रेडियो पर गाना बज रहा है। झूठ। आइपैड, आइपोड के ज़माने में रेडियॊ।
अच्छा, तो मोबाइल पर गाना बज रहा है--
"अल्लाह बचाए नौज़वानो से ,
-- --- ---
तौबा है ऐसे इन्सानों से ,
अल्लाह बचाए----"
और इधर मैं गा रहा था--
बाते हैं मीठी मीठी , रचना है फीकी फीकी।
कहता हूँ मै सीधे सीधे, कविताएँ उल्टी-पुल्टी
अल्लाह बचाए ’टैग वालों ’ से । अल्लाह !
अल्लाह बचाए---
गाना जो भी हो, दर्द एक -सा है। फ़र्क इतना है कि वो गा रही हैं मैं गा रहा हूँ। वह मनचले नौज़वानो से परेशान है
मैं ज्ञानी टैग वालों से ।
"टैग करना" क्या होता है? "शो-रूम" पीढ़ी वाले फ़ेसबुकिया नौज़वान अच्छी तरह जानते होंगे ,
और जो "म्यूजियम मैटिरल" वाले लोग है,[जैसे मैं ], तो उन्हे स्पष्ट कर दूँ कि यह एक मानसिक बीमारी है
जिसमे आप अपनी रचना को श्रेष्ठ मानते है और- मान न मान मैं तेरा मेहमान- वाली शैली में।-
अपने फ़ेसबुकिया मित्रों के ’वाल ’ पर चेंप देते हैं।। यह एक घातक बीमारी तो नहीं, पातक बीमारी ज़रूर है ।
इस बीमारी मेंआदमी ’विक्षिप्त’ भी हो सकता है। तब उसे होश नहीं रहता कि वो किसी के गाल पर "टैग’
कर रहा है कि किसी के सर पर ’टैप’ कर रहा है।
इस बीमारी हर वक़्त फ़ेसबुक चेक करते रहना अच्छा लगता है। कितने लाइक आए--कितने कमेन्ट मिले -
-कितने वाह वाह हुए। कितनो ने मुझे ख़िताब दिया। रात में सोते हुए भी अपनी रचना का ’लाइक’ गिनता है
और कमेन्ट पढ़ता है, आल्हादित होता है।
चिकित्सा शास्त्र में इसे ’ फ़ेसबुखेरिया" कहते हैं--मलेरिया --फ़ाइलेरिया --लभेरिया-- की तर्ज़ पर।
। यह अपने अनुभव से कह रहा हूँ-फ़ेस बुखेरिया-का अनुभव। इस रोग में ’भूख’ नही लगती ।
-कल एक सज्जन फ़ेसबुक पर विलाप करते हुए मिल गए। उनके कई मित्र है जो उनके ’वाल’ पर[गाल पर नहीं] हर रोज़
2-4-10 रचनाएँ टैग कर देते हैं। कचरा फ़ैला देते है। और भाई साहब हैं कि रोज़ सुबह सुबह झाड़ू लेकर अपना ’वाल साफ़’ करते हैं
और मनोच्चरित गाली भी देते हैं, उन टैग वालो को जो यहाँ उल्लेख करने योग्य भी नहीं। मैने सलाह दिया कि भाई साहब! उन सबको
"ब्लाक’ क्यों नहीं कर देते। { पाठको को मैं ज़रा स्पष्ट कर दूँ कि कुछ महिला-कवयित्रियों ने मुझे ब्लाक कर रखा है ,मगर वह "टैग" के कारण नहीं।]
भाई साहब कहने लगे- पाठक जी! शरीफ़ आदमी हूँ ,शराफ़त में मारा जाता हूँ। अगर उनको नहीं है अपनी तो है ।
फ़ेसबुक पर हर दूसरा आदमी -कवि है .लेखक है, ग़ज़लकार है,साहित्यकार है, साहित्य के एक्सपर्ट है।
वह बस लिखता रहता है निरन्तर, परन्तु पढ़ता नहीं । न अपना न किसी और का ।
मैं भी ऐसे 2-4 ’टैग वालों ’से पीड़ित हूँ। कई बार मना किया, हाथ जोड़ा, माफ़ी माँगी ,करबद्ध प्रार्थना की।
आप के चरण किधर हैं, प्रभु-भी कई बार पूछा। मगर वह कहाँ माने।
वो कब बाज़ है मुझे ’टैग’ कर के
हमी थक गए है हटाते-हटाते
कई बार कहा-भाई साहब माना कि आप , वरिष्ठ कवि है, गरिष्ठ कवि है, शिष्ट कवि हैं. राष्ट्रीय कवि है
अन्तर्राष्ट्रीय कवि है, अन्तरराष्ट्रीय कवि है, इस सदी के महान कवि हैं ,प्रथम कवि है, अन्तिम कवि हैं
हिंदी साहित्य के चाँद हैं सूरज हैं, मगर मेरी आँख में उँगली डाल डाल कर यह सब क्यूँ बता रहे हैं?
जब सूरज आसमान पर चढ़ेगा तो देख लेंगे।
वो कहते हैं --भाई साहब! हम लोगों का मकसद इतना होता है कि आप देखे--मैं बड़ा हुआ तो कितना -- और तुम रह गए ठिगनामैं कहाँ से कहाँ चला आया और तुम ? मैं कितना सनद प्रमाण पत्र बटॊर लाया, और तुम? मैं कितना नारियल फ़ोड़ आया और तू[ अब वह तुम से तू पर आ गए-बड़े कवि हो गए ] मैं कितना साल ओढ़ आया और तू ?मैं कितना मुशायरा लूट आया और तूो।यह देख मेरी फोटो-"दद्दू" के साथ और तू । यह देख मेरी प्रोफ़ाइल --यह ’बुक’ मेरा देखो-- ये सूट मेरा देखो--ये बूट मेरा देखो --मैं हूँ शायर लंदन का।
खैर वह इन्ही सब में मगन है। हिंदी की सेवा कर रहे हैं । हिंदी कृतार्थ हो रही है । हम आप कौन होते है उन्हें टोकने वाले।
कविता कर के वह खुद न लसे
कविता लसी पा यह ’टैग ’ कला
टैग करने वालों की हालत तो यह है कि --
कल जिसे अपनी कविता सुना कर आया था
उसी के टैग का पत्थर मेरी तलाश में है ।
[ नूर जी से क्षमा याचना सहित]
लोग टैग इसलिए करते हैं कि हमे पता चलता रहे कि ’फ़ेसबुक ’पर आजकल हिंदी का दशा-दिशा क्या चल रही है।
[ नोट ; चलते चलते अपने "टैग करने वाले नौज़वान भाइयॊ से-क्षमा याचना सहित -
मजरूह सुल्तानपुरी साहब का शे’र है [शायद] -
जफ़ा के ज़िक्र पर तुम क्यों सँभल कर बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं, बात है ज़माने की ।
वैसे -जफ़ा करने और टैग करने में कोई फ़र्क नहीं --भाव बरोबर है ]
अच्छा । आज इतना ही। चलते हैं । अभी यह लेख "टैग’ करने जाना है ।
सादर
-आनन्द.पाठक-
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-9-22} को "श्रद्धा में मत कीजिए, कोई वाद-विवाद"(चर्चा अंक 4549) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जी धन्यवाद
हटाएंबहुत ख़ूब पाठक जी !
जवाब देंहटाएंटैग करने वाले इस भयंकर संक्रामक रोग के निदान हेतु जैसे ही कोई वैक्सीन तैयार हो, हमको सूचित कीजिएगा.
वैसे जिन-जिन विद्वानों ने फॉरवर्डिंग एजेंसीज़ खोल रक्खी हैं और हमको रोज़ाना दूसरों के अशआर फॉरवर्ड कर के खुद को मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़िराक या गुलज़ार समझ रखा है, उन से बचने का भी कोई उपाय हो तो बताइएगा.
सर
हटाएंजब निदान ही मालूम रहा होता
तो यह विलाप क्यों कर रहा होता
😂😂😂🤪
सटीक।
जवाब देंहटाएंआभार आप का
हटाएंसटीक सार्थक व्यंग्यात्मक रचना हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद आप का🙏
हटाएंक्या खूब कहा है। आनन्द वर्धन करने के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंजी कृपा आप की🙏
हटाएंकृपा आप की🙏
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