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गुरुवार, 15 सितंबर 2022

एक कविता

 कविता


फूल बन कर कहीं खिले होते
जनाब ! हँस कर कभी मिले होते
किसी की आँख के आँसू
बन कर बहे होते
पता चलता
यह भी ख़ुदा की बन्दगी है
क्या चीज़ होती ज़िन्दगी है ।


आप को फ़ुरसत कहाँ
साज़िशों का ताना-बाना
बस्ती बस्ती आग लगाना
थोथे नारों से
ख्वाब दिखाना।
सब चुनाव की तैयारी है
दिल्ली की कुर्सी प्यारी है।


-आनन्द.पाठक-

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 16 सितंबर 2022 को 'आप को फ़ुरसत कहाँ' (चर्चा अंक 4553) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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