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शनिवार, 24 सितंबर 2022

एक हास्य व्यंग्य : टाइम-पास

एक हास्य-व्यंग्य : टाइम-पास

 "टाइम पास" की शुद्ध हिंदी क्या होती है, पता नहीं। "गूगल बाबा" से भी पूछा तो उन्होने कुछ खास बताया नहीं।
केजरीवाल साहब शायद कुछ बता सकें काफी अनुभव है उनको इसमें। शायद झख मारना होता होगा । ख़ैर।

 टाइम-पास होती बड़ी मज़ेदार चीज़ है। शाश्वत है अमूर्त है अमर है। हर काल में अस्तित्व रहा है। इतिहास गवाह है।
राजा-महाराजा भी टाइम पास करते थे -कभी रंग महल में ,कभी चारण के साथ कभी -भाट-दरबारियॊं के साथ। कुछ टाइम बचा तो
तो फ़ालतू की 1-2 लड़ाई लड़ कर टाइम पास करते थे। यह प्रथा आज भी है। यूक्रेन है-रूस है। चीन अभी सोच रहा है।
विपक्ष वाले हर चुनाव के पहले एकता एकता कर के टाइम पास करते हैं ।हासिल कुछ नहीं होता।
 नवाबी काल में कुछ कनकौए उड़ा उड़ा कर, कुछ मुर्गे-तीतर-बटेर लड़ा लड़ा कर टाइम पास करते थे। कुछ नवाबज़ादों को 1-2 बटेर हाथ लग 
भी जाती थी । ।प्रेमचन्द जी के शतरंज के के खिलाड़ी’ को ही देख लें- मिर्ज़ा साहब गवाह है। बैठक खाने में जगह न मिली तो गोमती 
के किनारे खंडर में ही बैठ कर टाइम-पास किया करते थे। नवाब वाज़िद अली शाह की गिरफ़्तारी भी, उनके टाइम-पास में खलल न डाल सकी
 सल्तनत क्या चीज़ है टाइम पास वालों के सामने। आज भी ज़िन्दा है यह कला । न्यूज चैनल पर टी0वी0 पर हर शाम दंगल में, हुंकार में ताल-ठोंक के, की शकल में,
जिसको देख देख कर आप भी यह सुख प्राप्त कर सकते है। इसीलिए मैं कहता हूँ टाइम-पास करना एक कला है ,शाश्वत है। अमूर्त है। अमर है।

 मुझ से अच्छा टाइम पास कौन कर सकता है। बचपन में चन्दा मामा पढ़ पढ़ कर टाइम-पास करता था। उस ज़माने में ’कार्टून चैनेल’नहीं हुआ करते थे। बड़ा हुआ तो एक "सेकेंड हैंड’-साइकिल ले कर "उसकी" गली का चक्कर लगा लगा कर टाइम-पास करता था
नतीज़ा यह हुआ कि मैं हाई स्कूल में फेल हो गया और ’वो’ किसी ’ एम्बेसडर वाले के साथ निकल ली। उस ज़माने में ’एम्बेसडर’ और फ़ियेट ही हुआ करता था। आज का वक़्त होता तो ’वो’किसी ’मर्सीडिज’ वाले का साथ निकल लेती और मैं हाइ-स्कूल में फ़ेल हो कर भी किसी प्रदेश का उप-मुख्य मंत्री या मंत्री बना होता। 

खैर वक़्त की अपनी रफ़्तार होती है।आज गगनचुम्बी वाली फ़्लैट और टावर-हाइट के ज़माने में इस सुख से वंचित हो गया। अब चक्कर लगाने का मौक़ा ही नहीं
मिलता और अगर मिला भी तो डर यही रहेगा कि मेरा संदेश किसी और माले पर रहने वाली को न चला जाए । उसे कैसे मालूम चलेगा कि 
चालीस माले की बिल्डिंग मे किस माले वाली का चक्कर लगा रहा हूं~?

 सरकारी नौकरी में टाइम-पास करने की कोई कमी नहीं थी। जितना चाहो -उतना । जब टाइम-पास करते करते मन उकता जाता था ,जी भर जा्ता था तो 1-2 सरकारी काम भी निपटा देता था टाइम-पास के लिए। विभाग में मेरे एक साथी थे। मैं उनका चेला था । कहते थे--बने रहॊ पगला -काम करेगा अगला।
सो इसी मूल मंत्र से निष्ठापूर्वक टाइम पास करते करते मैं भी रिटायर भी हो गया वह भी रिटायर हो गए। टाइम-पास करने वालों को टाइम की कमी नही रहती। मगर पूछने पर यही कहते हैं---यार मेरे पास टाइम नही है अभी।
 
 रिटायरोपरान्त, सुबह सुबह उठ कर अपने ’मोबाइळ देव’ को प्रणाम करता हूँ। बिस्तर पर लेटे लेटे ही गुड-नाइट -गुड मार्निंग-वाला मेसेज पड़ता हूँ
पिछली रात मेरे द्वारा लिखे गए ’वन-लाइनर’ सूक्ति वाक्य पर .मेरे "डी0 पी0 पर. मेरे फ़ेसबुक की स्टोरी पर, मेरे ह्वाट्स अप स्टैटस पर कितने लाइक मिले
कितनी टिप्पणियाँ आईं-गिनता हूँ, ह्वाट्स पर आये अयाचित ’उपदेशों को’ , सूक्ति वाक्यॊ को पढ़ता हूँ-तब जाकर कहीं अँगड़ाई लेता हूँ। कमाल यह कि हर बार वही उपदेश हज़ारों बार अग्रसरित [फ़ारवर्ड] किए हुए होते हैं -मगर सब नया नया -सा लगता है।
फ़िराक़ गोरखपुरी साहब ने कहा भी -

हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है तेरी रहगुज़र फिर भी

जब कि फ़िराक़ साहब के ज़माने में ह्वाटस अप नहीं था -मगर उनकी दृष्टि बहुत दूर तक की थी --ह्वाट्स अप तक थी।
फिर नहा-धो कर पूजा पाठ कर चंदन-टीका लगा कर अपनी गद्दी पर बैठता हूँ -बड़ी मुहब्बत से ,शिद्दत से उन तमाम संदेशों का जवाब देता हूँ। कभी बर्थ-डे का . कभी मैरेज-डे का , कभी RIP भी कर देता हूँ। और यह सब करते करते दो-पहर हो जाता है कि श्रीमती जी का ह्वाट्स अप मेसेज आता है -- अगर उन ’मेसेंन्जड़ियॊ से फ़ुरसत मिल गई हो तो लंच रख दिया है खा लेना।
उन्होने शायद ’मेसेन्जड़ियॊ; का तुक ’गजेड़ियों’-नशेड़ियों-गजेड़ियो से मिलाया होगा।अरे श्रीमती जी किसकी हैं !इतनी तुकबन्दी तो मेरी सुहबत से आ ही गई होगी।
 वैसे इन सब महानुभावों में कोई ख़ास फ़र्क होता भी नहीं।

 टाइम पास करने के सबके अपने अपने तरीके हैं। कवि का तरीका अलग--शायर का तरीका अलग ।कवयित्रियॊ का तरीका अलग। रिटायरियॊ का तरीका अलग कविता चोरो का तरीका अलग। नेताओं का तरीका अलग। कुछ तो फ़्री बिजली, फ़्री पानी, फ़्री राशन की घोषणा कर के टाइम पास करते हैं। कुछ मुफ़्त की ’रेवड़ी" बाँट बाँट कर टैम-पास करते हैं।
 कवयित्रियाँ टाइम पास नहीं करती। उन्हे टाइम ही नहीं मिलता ’ब्यूटी पार्लर’ से। कवि ही टाइम-पास करते हैं कवयित्रियों के साथ। बहन जी यह बहन जी वह। और मैं ’कवि’ नहीं हूँ। 
 सबसे खतरनाक ढंग से टाइम पास कवि/शायर करता है। अगर आप फँस गए तो समझिए वह अपनी गीत-ग़ज़ल सुना सुना कर आप की जान ले लेगा और आप ने वाह वाह नहीं किया तो आप की 
बखिया उधेड़ कर-कि आप ने कहाँ कहाँ से कौन कौन सी कविता चोरी कर मंच से पढ़ी है--।

एक बार ऐसे ही फँस गया । बहुत दिन हो गए थे। सोचा फोन कर भाई जी का हालचाल ले लूँ।
प्रणाम भाई जी-मैने फोन किया।
-अहा! सौभाग्य मेरा। आप जैसे श्रीमन के आप के स्मरण मात्र से इस अकिंचन का मन पल्लवित , पुष्पित प्रफुल्लित हो गया--’
[ लगता है वह श्रीमान जी उधर हिंदी का शब्दकोश खोल कर बैठे है।]
-श्री मान जी --अभी अभी एक ग़ज़ल हुई है --ज़रा सुनिएगा -अपनी बहुमूल्य राय बताइएगा। इस ग़ज़ल की विशेषता यह है कि मैने ऐसा रदीफ़ और क़ाफ़िया बाँधा है कि मियाँ ग़ालिब भी ऐसा रदीफ़ बाँधने से पहले दो बार सोचते----अच्छा अब यह दूसरी ग़ज़ल सुनिएगा श्रीमन - नए रंग की ग़ज़ल है--अभी तक किसी शायर ने इस रंग में ग़ज़ल नहीं कही है ---वाह वाह -- क्या ग़ज़ल कही मैने ---यह मेरा लघु और विनम्र प्रयास है---अरे हाँ यह ग़ज़ल सुनाना तो भूल ही गया जब मैं सब्ज़ी लाने बाज़ार जा रहा था --रिक्शे पर बैठे बैठे यह ग़ज़ल हो गई--इस ग़ज़ल पर तो मुझे इस सप्ताह का पुरस्कार भी मिला --- टैग करता हूँ आप को--और यह गीत ---अहा क्या गीत लिखा मैने--हॄदय निचोड़ कर रख दिया समझिए यह गीत नहीं जिगर का टुकड़ा है लहू से लिखा हो मानो--।
भाई जी--यह दोहा तो आप को सुनाना भूल ही गया ---जिस पर मुझे ’दोहा-शिरोमणि’ पुरस्कार मिला है कल ही---अच्छा चलते चलते एक ’हाइकू’
भी सुन लें --मैने पहली बार इसमे एक नया प्रयोग किया है कि बिना किसी सार्थक भाव के भी हाइकू लिखा जा सकता है। बस एक आख़िरी और-----

उन्होने एक और--एक और कहते कहते पूरे एक घंटे अपनी 3-4 ग़ज़ले--1-2 गीत., 3-4 दोहे 3-4 हाइकू सुना कर ही दम लिया। मैं ’सेरीडान’ की टैबलेट खोजने लगा। फोन पर अपनी चरण-’पादुका’ ढूंढने का कोई अर्थ नहीं था सो फोन काटने की गरज़ से मैने कहा- 
- ’सर! एक शे’र मेरा भी सुन लें’
’हाँ हाँ , अवश्य अवश्य। इस अकिंचन का सौभाग्य होगा कि आप जैसे महान कवि के मुखारविन्द से कोई शे’र सुन रहा हूँ--जी सुनाइए-स्वागत 
मैने सुनाया

 वह क़ैद हो गया है अना के मकान में
 खुद ही क़सीदा पढ़ने लगा खुद की शान में

’तुम जलते हो मेरी लोकप्रियता से’ सम्मान से -कह कर उन्होने फोन काट दिया।

मैं तब से सोच रहा हूँ कि भाई साहब ’टाइम-पास’ कर रहे थे या ’आत्म-श्लाघा’ के ’बाथरूम-टब’ में छपछपा रहे थे या क़ाफ़िया मिला रहे थे।

अस्तु

-आनन्द.पाठक-

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