‘समाजवाद’ और ‘पूंजीवाद’ दोनों शब्दों के बीच पारस्परिक अन्तर्द्वन्द है। ‘समाजवाद’ में जहां समाज, संस्कृति, परम्परा और आम आदमी की बात झलकती है वहीं ‘पूंजीवाद’ में इसके ठीक विपरीत की क्रियाओं का आभास हुआ करता है। यूं तो ‘समाजवाद’ शब्द त्रेतायुग से प्रचलित है। भगवान राम का अभिमानी रावण के खिलाफ संघर्ष ‘समाजवाद’ का ही द्योतक माना गया। भगवान श्रीकृष्ण का कंस के आमनुषिक शासन के विरुद्ध छेड़ा गया अभियान भी ‘समाजवाद’ का रूप है। अगर यह ‘समाजवाद’ अपने स्वरुप को बदलकर ‘पूंजीवाद’ में परिवर्तित हो जाय और उसका आचरण करने वाले खुद को समाजवादी बोलें तो उसे एक नया नाम आधुनिक ‘समाजवाद’ दिया जा सकता है। 21 नवंबर 2015 की रात उत्तर प्रदेश के सैफई गांव में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के 77वें जन्मदिन समारोह में जो देखने को मिला उसे देखकर मैने इसे मुलायम का आधुनिक ‘समाजवाद’ नाम देने की कोशिश की है। समाजवादी पार्टी के मुखिया खुद को डॉ. राम मनोहर लाहिया का अनुयायी बताते हैं। वह उनके समाजवादी विचारों से प्रभावित हैं। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में डॉ. लोहिया का समाजवाद न अपनाकर मुलायम सिंह यादव के अनुयायी मुलायम के आधुनिक ‘समाजवाद’ की परंपराओं का अनुपालन करेंगे। बर्थडे केक काटने से पहले मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर रही बात पूरी कर दी कि ‘समाजवाद का मतलब भूखा नंगा, नहीं बल्कि संपन्नता है।’ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन किसी महापर्व से कम नही था। चारों ओर सुबह से रात तक जश्न का माहौल दिखाई दिया। गांव की सभी इमारतें बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाई गई थीं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का पैतृक आवास भी फूलों व बिजली की लाइटों से सजाया गया था और मुख्य सड़क से लेकर उनके घर तक तोरणद्वार भी बनाये गये थे। शाम के समय बिजली की रंग-बिरंगी सजावट बाहर से आने वाले मेहमानों के लिए काफी आकर्षण का केन्द्र रही। जिस तरह से सपा मुखिया के जन्मदिन पर जो ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था उसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो दीपावली का त्योहार फिर से आ गया हो। मुलायम सिंह यादव के इस जन्मदिन समारोह में कितने रुपये फूंके गए। यह रुपए कहां से आये। इस पर बात करना मूर्खता होगी क्योंकि इन सबके अपने-अपने तर्क हैं। कोई इसे पार्टी के फंड का हिस्सा कहेगा तो कोई इसे खुद मुलायम परिवार की कमाई बताएगा। पर जवाब तो जनता को देना है कि वह किस समाजवादी विचारधारा की पोषक है। डॉ. लोहिया की या फिर मुलायम सिंह यादव के आधुनिक ‘समाजवाद’ की। मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन समारोह के लिए सैफई में जो मंच बनाया गया था, उसकी लागत ढाई करोड़ रुपए आयी। इस कार्यक्रम में आये पांच सौ लोगों के लिए आगरा के होटल आईटीसी मुगल की कैटरिंग बुक की गई थी। लंदन से बग्घी मंगवाई गई थी, दस कुंतल फूल मंगाये गए थे। इसके अलावा क्या कुछ हुआ होगा? इसे आप स्वत: समझ सकते हैं। पानी की तरह इस समारोह में फूंके गए पैसे किसके हैं। जरा उत्तर प्रदेश की हालत देखिये। गन्ना किसान रो रहे हैं। नहरों में पानी नहीं मिल रहा है। किसानों की बिजली नहीं मिल पा रही है। पूरे उत्तर प्रदेश में सड़कों की हालत बद से बदतर है। गेहूं की फसल तैयार हुई तो बेमौसम बारिश ने किसानों के सपने तोड़ दिए। दर्जनों की संख्या में किसानों ने मजबूर होकर मौत को गले लगा लिया। धान की फसल सूखे की स्थिति के कारण अच्छी नहीं हो सकी। दंगों का जिक्र क्या करें। मुजफ्फर नगर और दादरी कांड तो सभी जानते हैं। अपराध चरम पर है। आये दिन पुलिस अधिकारी से लेकर आम आदमी तक की हत्या हो रही है। 1.72 लाख शिक्षामित्रों का भविष्य संकट में है। इन सब विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सैफई में विलासिता का जश्न हो रहा है। अच्छा होता के इस कार्यक्रम में आरआर रहमान का शो कराने के बजाय प्रदेश भर में स्थानीय कलाकारों का शो करा दिया गया होता। इससे उन्हें ही कुछ पारिश्रमिक मिल जाता। अच्छा होता कि पानी की तरह फूंके गए इस पैसे को मुख्यमंत्री राहत कोष से सहायता मांग रहे फरियादियों को इमदाद दे दी गई होती। प्रतापगढ़ जिले के विकास खंड गौरा के सुरवां मिश्रपुर निवासी विजय यादव के पशुओं को किसी अपराधिक व्यक्ति ने जहर देकर मार डाला था। विजय यादव अपना परिवार चलाने के लिए मोहताज है। इन्हीं पशुओं से वह दूध बेचकर परिवार का भरण पोषण करता था। उसने मुख्यमंत्री से सहायता की फरियाद की थी, पर फरियाद बेकार गई। विजय की ही तरह कई और भी फरियादी है, जिसके ऊपर ‘सरकार’ की नजर नहीं पड़ी। वर्ष 2014 में मुलायम सिंह के करीबी आजम खां ने रामपुर में उनका शाही जन्मदिन मनाया था। इसके बदले में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की सौगात दी थी। इसी तरह मुलायम सिंह का समाजवादी परिवार हर साल सैफई महोत्सव के नाम पर अरबों रुपए नाच गाने पर फूंकता है। मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार की इस गतिविधि पर किसी को आपत्ति करने का हालाकि किसी को कानूनी अधिकार नहीं है। मेरा भी आशय इस पर किसी प्रकार की आपत्ति करने का नहीं। मेरा आशय सिर्फ इतना है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में अखिलेश यादव का फर्ज सिर्फ अपने पिता का विलासितापूर्ण जन्मदिन मनाने का ही नहीं, बल्कि उन सारे लोगों के पिता के जन्मदिन मनाने का माहौल बनाने की है जो उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। अकेले मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन मनाकर वह कुछ महीने, साल तक खुश रह सकते हैं, पर उत्तर प्रदेश के लोगों के दिलों पर राज नहीं कर सकेंगे।
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