आनंद मंत्रालय
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की पहल से प्रेरित हो कर एक अन्य राज्य के
मुख्यमंत्री ने भी अपनी सरकार में ‘आनंद मंत्रालय’ बनाने का विचार किया.
वह झटपट अपने बड़े भाई के पास दौड़े. बड़े भाई जेल में बंद होते हुए भी पार्टी
के अध्यक्ष थे, उन्हीं के आदेश पर मुख्यमंत्री सब निर्णय लेते थे. बड़े भाई ने
सोच-विचार कहा की पत्नी (अर्थात बड़े भाई की पत्नी) से बात करो. पत्नी भारत सरकार
में एक मंत्री के पद पर भी थीं. लेकिन हर
निर्णय वह अपने मामा की सलाह पर लेती थीं.
मामा बोले, अच्छा विचार है. बनवारी लाल बहुत परेशान रहते हैं, उन्हें
मंत्री जो न बनाया था. यह मंत्रालय उन्हें सौंप दो.
बनवारी लाल जी मामा के चहेते थे पर बड़े भाई को फूटी आँख न सुहाते थे. मामा राजनीति
के पुराने खिलाड़ी थे, जानते थे कि कम से कम बीस चुनाव क्षेत्रों में बनवारी लाल की
पकड़ थी. साल भर में चुनाव होने वाले थे. कई पार्टियाँ बनवारी लाल को अपनी ओर खींच
रहीं थीं. मुख्यमंत्री को बात जंच गयी. बनवारी लाल जी ‘आनंद मंत्री’ बन गए.
बड़े भइया ने सुना तो आग-बबुला हो गए. उधर बनवारी लाल भी अप्रसन्न थे. चुनाव
सिर पर थे, साल भर ही मंत्री रह सकते थे. उन्हें पी डब्लू डी जैसा विभाग चाहिए
था. ‘आनंद मंत्री’ बन कर वह ‘कुछ’ न कर
पायेंगे, इस बात का उन्हें अहसास था.
शाम कुमार को ‘आनंद मंत्रालय’ का सचिव नियुक्त किया गया. वह तीन वर्षों से बिना
किसी कार्यभार के अपना समय काट रहे थे. न्यायलय ने आदेश दे रखा था कि उन्हें तुरंत
किसी पद पर नियुक्त किया जाए. उनके बारे में प्रसिद्ध था कि कानून की हर किताब
उन्होंने रट रखी थी. जिस भी मंत्री के पास उन्हें भेजा जाता था वह मंत्री चार
दिनों में ही उनसे छुटकारा पाने को आतुर हो जाता था.
मंत्री जी के हर प्रस्ताव पर शाम कुमार मंत्री जी को बीसियों कायदे-कानून
समझा देते थे. शांत चित भाव से वही करते थे जो उन्हें न्याय-संगत, तर्क-संगत,
विधि-संगत, नियम-संगत और लोकोपकारी लगता था. मंत्री अपने बाल नोच लेते थे पर शाम कुमार बड़े शांत स्वभाव से अपने काम में जुटे
रहते थे. कोई भी मंत्री उन्हें उत्तेजित या क्षुब्द न कर पाया था.
शाम कुमार को अपने समक्ष पा कर बनवारी लाल के हाथ अपने सिर की ओर उठे. बहुत
प्रयास के बाद ही वह अपने को अपने बाल नोचने से रोक पाए.
‘नया विभाग है, तुरंत नये कायदे-कानून बनाने होंगे, तभी तो हम राज्य के इन
पीड़ित लोगों को आनंदित कर पायेंगे,’ शाम कुमार ने शांत लहजे में कहा.
‘कायदे-कानूनों की क्या कोई कमी हैं इस देश में जो आप को नए कानून बनाने की
सूझ रही है? अगर लोगों के कष्टों को दूर करना है तो कुछ कायदे-कानून हटाने की
सोचें. मिनिमम गवर्नेंस की बात करें,’ मंत्री ने थोड़ा खीज कर कहा.
‘कानून तो दूसरे विभागों के हटेंगे, हमारे विभाग के कानून तो बनाने होंगे.
पहली बार यह विभाग बना है, कानून तो बनाने ही होंगे.............’
‘क्यों न हम अलग-अलग देश जाकर पता लगाएं कि वहां उन देशों में ऐसे मंत्रालय
किस भांति चलते हैं, किस तरह वहां की सरकारें लोगों को आनन्द पहुंचातीं हैं?’
बनवारी लाल ने टोक कर कहा. वह दो बार मंत्री रह चुके थे लेकिन एक बार भी वह किसी
विदेशी दौरे पर न जा पाए थे. कई नये-नये मंत्री तो दस-बीस देश घूम आये थे,
परिवारों सहित. यह बात उन्हें बहुत खलती थी.
‘कुछ नये लोगों की भर्ती भी करनी होगी विभाग में,’ शाम कुमार अपनी धुन में
बोले.
भर्ती की बात सुनते ही मंत्री के कान खड़े हो गये. बोले, ‘मेरी अनुमति के
बिना एक भी आदमी भर्ती न हो.’
‘आप निश्चिंत रहें, इस विभाग में हर काम पूरी तरह नियमों के अनुसार ही
होगा. भर्ती नियमों के अनुसार...............’ शाम कुमार भर्ती नियमों एक लम्बी
व्याख्या करने लगे. अब बनवारी लाल अपने को रोक न पाये और अपने बाल नोचने लगे. मन
ही मन वह मुख्यमंत्री को कोस रहे थे.
बनवारी लाल और शाम कुमार को देख कर तो नहीं लगता कि यह मंत्रालय लोगों को
कभी को भी आनंदित कर पायेगा. फिर भी मुख्यमंत्री और उनके बड़े भाई की पत्नी के मामा
आनंदित हैं, शायद आने वाले तूफ़ान का उन्हें अभी आभास नहीं.
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