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उर्दू बह्र पर एक बातचीत :- क़िस्त 15 [ज़िहाफ़ात]
[Disclaimer Clause : -वही जो क़िस्त 1 में है-
कुछ ज़िहाफ़ ऐसे हैं जो ’सबब-ए-सकील’ [हरकत+हरकत] पर ही लगते हैं । [सबब-ए-सकील के बारे में पिछली क़िस्त 11 में लिखा जा चुका है ।एक बार फिर लिख रहा हूं~
आप जानते है सबब के 2-भेद होते है
सबब-ए-ख़फ़ीफ़ : वो 2 हर्फ़ी कलमा जिसमें पहला हर्फ़ मुतहर्रिक [यानी पहले हर्फ़ पर हरकत हो] और दूसरा हर्फ़ साकिन हो
सबब-ए-सक़ील :- वो 2 हर्फ़ी कलमा जिसमे पहला हर्फ़ मुत्तहर्रिक हो और दूसरा हर्फ़ भी मुतहर्रिक हो
आप जानते हैंकि उर्दू जुबान में किसी लफ़्ज़ का पहला हर्फ़ मुत्तहर्रिक तो होता है पर आख़िरी हर्फ़ [हर्फ़ उल आख़िर] मुतहर्रिक नहीं होता बल्कि साकिन होता है
तो फिर सबब-ए-सक़ील के मानी क्या ?
दिल्...विल् ...सिल् ...मिल्...सिल ... सबमें आखिरी हर्फ़् साकिन् है और् पहले हर्फ़् पर हरकत् [ज़ेर की हरकत] है
अब दिले-नादां ....ग़मे-दिल ..जाने-जानाँ ...दिलो-जान पर ज़रा ग़ौर फ़र्माए आप को ...ल....म....न...पर थोड़ा भार या वज़न देना पड़ता है यानी ल..म..न..पर थोड़ा जबर आ जाता है यानी इन हर्ह के तलफ़्फ़ुज़ में उतना फ़्री नही फ़ील करते है जितना फ़्रीडम दिल्...विल् के ’ल्’ में फ़ील करते हैं
बस यही दिले-नादां ...ग़मे-दिल ..शब-ए-ग़म जैसी तर्क़ीब से दिल...ग़म...शब,,,,जान... के ....ल...म...ब...न....पर हरकत आ गई--जबर की हरकत
अब दिले-नादां में ’दिल’ [तर्क़ीब को इज़ाफ़त कहते है] -ल- पर हरकत [जबर का] आ गई और द पर तो हरकत है ही [ज़ेर का] अत: यहां~ दिल --सबब-ए-सक़ील है वरना independently दिल् तो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है
ग़मे-दिल में ’ग़म’ [ तर्क़ीब को इज़ाफ़त कहते है[ के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: यहाँ गम .....सबब-ए-सक़ील है वरना independently ग़म् तो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है
शबे-ग़म में ’शब’ [तर्क़ीब को इज़ाफ़त कहते है के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: यहाँ ,.....शब..... सबब-ए-सक़ील है वरना independently शब् तो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है
यही बात् नीचे की तरक़ीब में भी है जिसे अत्फ़ कहते हैं
दिलो-जान मे ’दिल’ [तर्क़ीब को अत्फ़ कहते है -दिल-के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: सबब-ए-सक़ील है
शब-ओ-रोज़ में शब [तर्क़ीब को अत्फ़ कहते है]-शब-के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: सबब-ए-सक़ील है
चलिए अब ज़िहाफ़ पर आते हैं जो सबब-ए-सकील पर लगते है वो हैं.....इज़्मार.....अस्ब.....वक़्स.....अक् ल् [4-ज़िहाफ़]
ज़िहाफ़ इज़्मार : अगर कोई रुक्न सबब-ए-सक़ील [हरकत+हरकत} से शुरु होता है तो दूसरे मुक़ाम पर आने वाले मुतहर्रिक को साकिन कर देना इज़्मार कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ’मुज़्मर’ कहते है
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ एक ही रुक्न ऐसा है जिसके शुरु में ’सबब-ए-सक़ील’ आता है और वो सालिम रुक्न है
मु त फ़ा ’अलुन [1 1 2 12] .....जिसमें मु.[हरकत]..त[हरकत] ... सबब-ए-सक़ील है और और दूसरे मुक़ाम पर जो --त--[ते है] को साकिन करना है यानी -त्- हो गया तो बाक़ी बचा मुत् फ़ा’अ लुन् [ 2 2 12] जिसको मानूस् बहर् ’मुस् तफ़् इलुन् [2 2 12] से बदल लिया। यहा मु त [1 1] सबब-ए-सक़ील इज़्मार की अमल से --मुत् [2] सबब-ए-ख़फ़ीफ़ हो गया
आप् जानते हैं कि सालिम रुक्न ’मुतफ़ाइलुन’ बह्र-ए-कामिल का बुनियादी रुक है अत: यह ज़िहाफ़ भी बहर-ए-कामिल से ही मख़सूस है
ज़िहाफ़ अस्ब : सबब-ए-सक़ील का दूसरा [second] मुतहर्रिक अगर किसी रुक्न के ’पाँचवे’ मुक़ाम पर आये तो उस को साकिन करना ’अस्ब’ कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ’मौसूब’ कहते हैं
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ 1-रुक्न ऐसा है जिसमें सबब-ए-सक़ील का दूसरा हर्फ़ ’पाँचवें’ मुक़ाम पर आता है और वो रुक्न है
मफ़ा इ ल तुन् [ 12 1 1 2] में इ ल [ 1 1] सबब-ए-सक़ील है और -ल- पांचवे मुक़ाम् पर है को ज़िहाफ़ अस्ब साकिन कर् देता है तो बाक़ी बचा मफ़ा इल् तुन् [12 2 2] जिसे हम् वज़न् मानूस् रुक्न् मफ़ाईलुन् [12 2 2 ] से बदल् लिया
अब यहाँ इल [1 1] सबब-ए-सक़ील ज़िहाफ़ अस्ब की अमल से से ’ इल्[2] सबब-ए-ख़फ़ीफ़ हो गया
आप जानते है कि सालिम रुक्न --मफ़ा इ ल तुन [12 1 1 2] बहर-ए-वाफ़िर की बुनियादी रुक्न है अत: यह ज़िहाफ़ बहर-ए-वाफ़िर से मख़सूस है
ज़िहाफ़ वक्स : सबब-ए-सक़ील के second position पर आने वाले हर्फ़ को गिराना वक़्स कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ’मौक़ूस’ कहते है
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ 1-रुक्न ऐसा है जो सबब-ए-सक़ील से शुरु होता है और वो रुक्न है ’मु त फ़ाइलुन [1 1 2 12] इसमें से दूसरे मुक़ाम पर [त -मुतहर्रिक है ] को गिरा दिया तो बाक़ी बचा ] ’मु फ़ा इलुन [1 2 1 2]
ज़िहाफ़ अक्ल् :- सबब्-ए-सक़ील का दूसरा हर्फ़ [मुतहर्रिक] अगर किसी सालिम रुक्न के ’पाँचवें’ मुक़ाम पर आए तो उसको गिराना ’अक्ल् कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ;मौकूल् कहते हैं
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ एक रुक्न ऐसा है जिसमें सबब-ए-सक़ील का दूसरा मुतहर्रिक ’पाँचवे’ मुकाम पर आता है जिसका नाम है --’मफ़ा इ ल तुन ’
मफ़ा इ ल तुन [12 1 1 2] के पाँचवें मुक़ाम पर आने वाले ’ल’ को गिरा दिया तो बाक़ी बचा -मफ़ा इ तुन’ [12 12 ] जिसे किसी मानूस हम वज़न बहर ’मफ़ाइलुन [12 12] से बदल लिया
अब एक काम आप के लिए छोड़े जा रहा हूँ
आप ज़िहाफ़ इज़्मार और ज़िहाफ़ वक़्स को एक साथ पढ़ें --तो फ़र्क़ साफ़ नज़र आयेगा
आप ज़िहाफ़ अस्ब और ज़िहाफ़ अक्ल को एक साथ पढ़ें---तो फ़र्क़ साफ़ नज़र आयेगा
अब सबब [ सबब-ए-ख़फ़ीफ़ और सबब-ए-सक़ील ] पर लगने वाले ज़िहाफ़ात का बयान ख़त्म हुआ
और अन्त में---
--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं ।बा करम मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।
अभी नस्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....
अस्तु
शेष अगली कड़ी में...................... अब उन ज़िहाफ़ात का ज़िक़्र करेंगे जो ’वतद’ पर लगते है
[नोट् :- पिछली कड़ी आप मेरे ब्लाग पर भी देख सकते हैं
www.urdu-se-hindi.blogspot.com
or
www.urdusehindi.blogspot.com
-आनन्द.पाठक-
0880092 7181
उर्दू बह्र पर एक बातचीत :- क़िस्त 15 [ज़िहाफ़ात]
[Disclaimer Clause : -वही जो क़िस्त 1 में है-
कुछ ज़िहाफ़ ऐसे हैं जो ’सबब-ए-सकील’ [हरकत+हरकत] पर ही लगते हैं । [सबब-ए-सकील के बारे में पिछली क़िस्त 11 में लिखा जा चुका है ।एक बार फिर लिख रहा हूं~
आप जानते है सबब के 2-भेद होते है
सबब-ए-ख़फ़ीफ़ : वो 2 हर्फ़ी कलमा जिसमें पहला हर्फ़ मुतहर्रिक [यानी पहले हर्फ़ पर हरकत हो] और दूसरा हर्फ़ साकिन हो
सबब-ए-सक़ील :- वो 2 हर्फ़ी कलमा जिसमे पहला हर्फ़ मुत्तहर्रिक हो और दूसरा हर्फ़ भी मुतहर्रिक हो
आप जानते हैंकि उर्दू जुबान में किसी लफ़्ज़ का पहला हर्फ़ मुत्तहर्रिक तो होता है पर आख़िरी हर्फ़ [हर्फ़ उल आख़िर] मुतहर्रिक नहीं होता बल्कि साकिन होता है
तो फिर सबब-ए-सक़ील के मानी क्या ?
दिल्...विल् ...सिल् ...मिल्...सिल ... सबमें आखिरी हर्फ़् साकिन् है और् पहले हर्फ़् पर हरकत् [ज़ेर की हरकत] है
अब दिले-नादां ....ग़मे-दिल ..जाने-जानाँ ...दिलो-जान पर ज़रा ग़ौर फ़र्माए आप को ...ल....म....न...पर थोड़ा भार या वज़न देना पड़ता है यानी ल..म..न..पर थोड़ा जबर आ जाता है यानी इन हर्ह के तलफ़्फ़ुज़ में उतना फ़्री नही फ़ील करते है जितना फ़्रीडम दिल्...विल् के ’ल्’ में फ़ील करते हैं
बस यही दिले-नादां ...ग़मे-दिल ..शब-ए-ग़म जैसी तर्क़ीब से दिल...ग़म...शब,,,,जान... के ....ल...म...ब...न....पर हरकत आ गई--जबर की हरकत
अब दिले-नादां में ’दिल’ [तर्क़ीब को इज़ाफ़त कहते है] -ल- पर हरकत [जबर का] आ गई और द पर तो हरकत है ही [ज़ेर का] अत: यहां~ दिल --सबब-ए-सक़ील है वरना independently दिल् तो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है
ग़मे-दिल में ’ग़म’ [ तर्क़ीब को इज़ाफ़त कहते है[ के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: यहाँ गम .....सबब-ए-सक़ील है वरना independently ग़म् तो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है
शबे-ग़म में ’शब’ [तर्क़ीब को इज़ाफ़त कहते है के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: यहाँ ,.....शब..... सबब-ए-सक़ील है वरना independently शब् तो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है
यही बात् नीचे की तरक़ीब में भी है जिसे अत्फ़ कहते हैं
दिलो-जान मे ’दिल’ [तर्क़ीब को अत्फ़ कहते है -दिल-के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: सबब-ए-सक़ील है
शब-ओ-रोज़ में शब [तर्क़ीब को अत्फ़ कहते है]-शब-के दोनो हर्फ़ पर हरकत है अत: सबब-ए-सक़ील है
चलिए अब ज़िहाफ़ पर आते हैं जो सबब-ए-सकील पर लगते है वो हैं.....इज़्मार.....अस्ब.....वक़्स.....अक् ल् [4-ज़िहाफ़]
ज़िहाफ़ इज़्मार : अगर कोई रुक्न सबब-ए-सक़ील [हरकत+हरकत} से शुरु होता है तो दूसरे मुक़ाम पर आने वाले मुतहर्रिक को साकिन कर देना इज़्मार कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ’मुज़्मर’ कहते है
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ एक ही रुक्न ऐसा है जिसके शुरु में ’सबब-ए-सक़ील’ आता है और वो सालिम रुक्न है
मु त फ़ा ’अलुन [1 1 2 12] .....जिसमें मु.[हरकत]..त[हरकत] ... सबब-ए-सक़ील है और और दूसरे मुक़ाम पर जो --त--[ते है] को साकिन करना है यानी -त्- हो गया तो बाक़ी बचा मुत् फ़ा’अ लुन् [ 2 2 12] जिसको मानूस् बहर् ’मुस् तफ़् इलुन् [2 2 12] से बदल लिया। यहा मु त [1 1] सबब-ए-सक़ील इज़्मार की अमल से --मुत् [2] सबब-ए-ख़फ़ीफ़ हो गया
आप् जानते हैं कि सालिम रुक्न ’मुतफ़ाइलुन’ बह्र-ए-कामिल का बुनियादी रुक है अत: यह ज़िहाफ़ भी बहर-ए-कामिल से ही मख़सूस है
ज़िहाफ़ अस्ब : सबब-ए-सक़ील का दूसरा [second] मुतहर्रिक अगर किसी रुक्न के ’पाँचवे’ मुक़ाम पर आये तो उस को साकिन करना ’अस्ब’ कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ’मौसूब’ कहते हैं
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ 1-रुक्न ऐसा है जिसमें सबब-ए-सक़ील का दूसरा हर्फ़ ’पाँचवें’ मुक़ाम पर आता है और वो रुक्न है
मफ़ा इ ल तुन् [ 12 1 1 2] में इ ल [ 1 1] सबब-ए-सक़ील है और -ल- पांचवे मुक़ाम् पर है को ज़िहाफ़ अस्ब साकिन कर् देता है तो बाक़ी बचा मफ़ा इल् तुन् [12 2 2] जिसे हम् वज़न् मानूस् रुक्न् मफ़ाईलुन् [12 2 2 ] से बदल् लिया
अब यहाँ इल [1 1] सबब-ए-सक़ील ज़िहाफ़ अस्ब की अमल से से ’ इल्[2] सबब-ए-ख़फ़ीफ़ हो गया
आप जानते है कि सालिम रुक्न --मफ़ा इ ल तुन [12 1 1 2] बहर-ए-वाफ़िर की बुनियादी रुक्न है अत: यह ज़िहाफ़ बहर-ए-वाफ़िर से मख़सूस है
ज़िहाफ़ वक्स : सबब-ए-सक़ील के second position पर आने वाले हर्फ़ को गिराना वक़्स कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ’मौक़ूस’ कहते है
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ 1-रुक्न ऐसा है जो सबब-ए-सक़ील से शुरु होता है और वो रुक्न है ’मु त फ़ाइलुन [1 1 2 12] इसमें से दूसरे मुक़ाम पर [त -मुतहर्रिक है ] को गिरा दिया तो बाक़ी बचा ] ’मु फ़ा इलुन [1 2 1 2]
ज़िहाफ़ अक्ल् :- सबब्-ए-सक़ील का दूसरा हर्फ़ [मुतहर्रिक] अगर किसी सालिम रुक्न के ’पाँचवें’ मुक़ाम पर आए तो उसको गिराना ’अक्ल् कहलाता है और मुज़ाहिफ़ को ;मौकूल् कहते हैं
हम जानते हैं कि 8-सालिम रुक्न में से सिर्फ़ एक रुक्न ऐसा है जिसमें सबब-ए-सक़ील का दूसरा मुतहर्रिक ’पाँचवे’ मुकाम पर आता है जिसका नाम है --’मफ़ा इ ल तुन ’
मफ़ा इ ल तुन [12 1 1 2] के पाँचवें मुक़ाम पर आने वाले ’ल’ को गिरा दिया तो बाक़ी बचा -मफ़ा इ तुन’ [12 12 ] जिसे किसी मानूस हम वज़न बहर ’मफ़ाइलुन [12 12] से बदल लिया
अब एक काम आप के लिए छोड़े जा रहा हूँ
आप ज़िहाफ़ इज़्मार और ज़िहाफ़ वक़्स को एक साथ पढ़ें --तो फ़र्क़ साफ़ नज़र आयेगा
आप ज़िहाफ़ अस्ब और ज़िहाफ़ अक्ल को एक साथ पढ़ें---तो फ़र्क़ साफ़ नज़र आयेगा
अब सबब [ सबब-ए-ख़फ़ीफ़ और सबब-ए-सक़ील ] पर लगने वाले ज़िहाफ़ात का बयान ख़त्म हुआ
और अन्त में---
--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं ।बा करम मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।
अभी नस्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....
अस्तु
शेष अगली कड़ी में...................... अब उन ज़िहाफ़ात का ज़िक़्र करेंगे जो ’वतद’ पर लगते है
[नोट् :- पिछली कड़ी आप मेरे ब्लाग पर भी देख सकते हैं
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-आनन्द.पाठक-
0880092 7181
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-12-2016) को "शीतलता ने डाला डेरा" (चर्चा अंक-2573) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'