कौन भरता है मेरा बिजली का बिल?
आज पिछले माह का बिजली का बिल मिला. मैं अकसर बैंक से मैसेज आते ही बिजली का बिल ऑनलाइन भर देता हूँ. बिल बाद में
आता है और यूँ ही पड़ा रहता है. आज बिल पहले आ गया तो थोडा ध्यान से देखा.
बिल है 937 रूपये का, पर मुझे सिर्फ 603 रुपये देने हैं. सरकार की ओर से 334 रूपये की सब्सिडी मिली है. उत्सुकता हुई और पिछले माह का बिल भी खोज
निकाला. पिछले माह बिल था 1378 रूपये का, पर मैंने सिर्फ 839 रूपये ही अदा किये थे. मुझे 539 रूपये की सब्सिडी मिली थी. अर्थात पिछले दो महीनों में मैंने 2313 रूपये की बिजली इस्तेमाल की पर मुझे सिर्फ 1442 रूपये देने पड़े. लगभग 38% सब्सिडी मिली.
मन में सवाल खड़ा हुआ कि बाकि के 873 रूपये कहाँ से आये. इतना तो निश्चित है कि यह सब्सिडी की राशि कोई मंत्री
या मुख्य मंत्री अपनी जेब से तो दे नहीं रहा होगा. न ही कोई राजनीतिक पार्टी अपने
पार्टी फंड से दे रही होगी. इसका बोझ तो अंततः देश की जनता पर ही पड़ता होगा.
एक रिपोर्ट के अनुसार 2013 में देश में 30% लोग ऐसे थे जो दिन में 130 रुपए से कम खर्च पर अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे. स्थिति में कोई ख़ास
परिवर्तन आया होगा ऐसा लगता नहीं. आज भी लगभग एक-तिहाई लोग इस गरीबी रेखा के नीचे होंगे.
जो लोग इस गरीबी रेखा के ऊपर हैं उन में से भी अधिकाँश लोग सिर्फ दो वक्त की रोटी
ही जुटा पाते हैं. पर इन सब लोगों को हर वस्तु और सेवा पर कर देना पड़ता है. देश की सब सरकारें एक वर्ष में कोई पन्द्रह लाख करोड़ का अप्रत्यक्ष कर (indirect
tax) इकट्ठा कर लेती हैं. उलेखनीय है कि सिर्फ एक प्रतिशत लोग ही प्रत्यक्ष कर (direct
tax) देते हैं. उनमें से भी कितने लोग
सही टैक्स देते हैं इसका अनुमान लगाना कठिन है.
बिजली पर जो सब्सिडी सरकार देती है उसका अधिकाँश बोझ उन लोगों पर ही पड़ता
है जो गरीबी रेखा के नीचे हैं या जो गरीबी रेखा के नीचे तो नहीं हैं पर जो जीवन
यापन के लिए जीवन भर एक अथक परिश्रम करते हैं. गरीबों के दिए टैक्स से सम्पन्न
लोगों को सब्सिडी देना कहाँ तक उचित है ऐसा सोचना कोई सरकार अपनी ज़िम्मेवारी नहीं
समझती. न ही किसी नेता मी आत्मा उसे कचोटती है.
पर सबसे अन्यायपूर्ण बात तो यह है कि गरीबों के पैसे से यह सब्सिडी उन कई लोगों
को दी जाती है जो अपना बिल चुकाने में पूरी तरह सक्षम हैं. इतना ही नहीं इन लोगों में
से कई लोग ऐसे हैं जो वर्षों से अपना इनकम टैक्स भी सही दर पर नहीं चूका रहे.
ऐसा सब कुछ गरीबों के नाम पर ही होता है. इस देश का दुर्भाग्य ही है कि कुछ
चालाक लोग गरीबों के नाम पर देश की सम्पदा को उपभोग करते रहे हैं और करते रहेंगे. शायद
इसी कारण इन राजनेताओं को गरीब लोग इतने प्रिये हैं.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-12-2016) को "तुम्हारी याद स्थगित है इन दिनों" (चर्चा अंक-2561) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद
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