एक कविता : सूरज निकल रहा है.......
सूरज निकल रहा है
मेरा देश,सुना है
आगे बढ़ रहा है ,
सूरज निकल रहा है
रिंग टोन से टी0वी0 तक
घिसे पिटे से सुबह शाम तक
वही पुराने बजते गाने
सूरज निकल रहा है
लेकिन सूरज तो बबूल पर
टँगा हुआ है
भ्रष्ट धुन्ध से घिरा हुआ है
कुहरों की साजिश से हैं
घिरी हुई प्राची की किरणें
कलकत्ता से दिल्ली तक
धूप हमारी जाड़े वाली
कोई निगल रहा है
सूरज निकल रहा है
एक सतत संघर्ष चल रहा
आज नहीं तो कल सँवरेगा
सच का पथ
नहीं रोकने से रुकता है
सूरज का रथ
’सत्यमेव जयते’ है तो
सत्यमेव जयते-ही होगा
काला धन पिघल रहा है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
सूरज निकल रहा है
मेरा देश,सुना है
आगे बढ़ रहा है ,
सूरज निकल रहा है
रिंग टोन से टी0वी0 तक
घिसे पिटे से सुबह शाम तक
वही पुराने बजते गाने
सूरज निकल रहा है
लेकिन सूरज तो बबूल पर
टँगा हुआ है
भ्रष्ट धुन्ध से घिरा हुआ है
कुहरों की साजिश से हैं
घिरी हुई प्राची की किरणें
कलकत्ता से दिल्ली तक
धूप हमारी जाड़े वाली
कोई निगल रहा है
सूरज निकल रहा है
एक सतत संघर्ष चल रहा
आज नहीं तो कल सँवरेगा
सच का पथ
नहीं रोकने से रुकता है
सूरज का रथ
’सत्यमेव जयते’ है तो
सत्यमेव जयते-ही होगा
काला धन पिघल रहा है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-12-2016) को मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले-; चर्चामंच 2569 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'