मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

रविवार, 25 दिसंबर 2016

एक कविता : सूरज निकल रहा है

एक कविता :  सूरज निकल रहा है.......

सूरज निकल रहा है
मेरा देश,सुना है 
आगे बढ़ रहा है ,
सूरज निकल रहा है

रिंग टोन से टी0वी0 तक
घिसे पिटे से सुबह शाम तक
वही पुराने बजते गाने
सूरज निकल रहा है

लेकिन सूरज तो बबूल पर
टँगा हुआ है
भ्रष्ट धुन्ध से घिरा हुआ है
कुहरों की साजिश से हैं
घिरी हुई प्राची की किरणें
कलकत्ता से दिल्ली तक
धूप हमारी जाड़े वाली  
कोई निगल रहा है
सूरज निकल रहा है

एक सतत संघर्ष चल रहा
आज नहीं तो कल सँवरेगा 
सच का पथ
नहीं रोकने से रुकता है 
सूरज का रथ
’सत्यमेव जयते’ है तो
सत्यमेव जयते-ही होगा
काला धन पिघल रहा है

-आनन्द.पाठक-
08800927181

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-12-2016) को मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले-; चर्चामंच 2569 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं