चन्द माहिया : क़िस्त 36
:1:
दुनिया को दिखाना क्या !
दिल से नहीं मिलना
फिर हाथ मिलाना क्या !
:2:
कुछ तुम को ख़बर भी है
मेरे भी दिल में
इक ज़ौक़-ए-नज़र भी है
:3:
गुरबत में हो जब दिल
दर्द अलग अपना
कहना भी है मुश्किल
:4;
जितनी भी हो अनबन
तुम पे भरोसा है
रूठो न कभी , जानम !
:5:
मेरी भी तो सुन लेते
मैं जो ग़लत होती
फिर जो भी सज़ा देते
शब्दार्थ :
ज़ौक़-ए-नज़र = रसानुभूति वाली दॄष्टि
गुरबत में = विदेश में
-आनन्द.पाठक-
08800927181
:1:
दुनिया को दिखाना क्या !
दिल से नहीं मिलना
फिर हाथ मिलाना क्या !
:2:
कुछ तुम को ख़बर भी है
मेरे भी दिल में
इक ज़ौक़-ए-नज़र भी है
:3:
गुरबत में हो जब दिल
दर्द अलग अपना
कहना भी है मुश्किल
:4;
जितनी भी हो अनबन
तुम पे भरोसा है
रूठो न कभी , जानम !
:5:
मेरी भी तो सुन लेते
मैं जो ग़लत होती
फिर जो भी सज़ा देते
शब्दार्थ :
ज़ौक़-ए-नज़र = रसानुभूति वाली दॄष्टि
गुरबत में = विदेश में
-आनन्द.पाठक-
08800927181
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