गीत
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
मन्द मन्द मुस्कान तुम्हारी
मुख पर लगा गुलाल है
नैनों से नैना टकराये
दिल में मचा धमाल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
बोल तुम्हारे मिश्री जैसे
मुखड़ा कोमल लाल है
अंग अंग कुंदन सा दमके
लगा सोलवाँ साल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
खूब बरसते बादल आकर
मनवा अब बेहाल है
मधुरस टपके अधरों से जब
लगता बहुत कमाल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
संजय कुमार गिरि
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
मन्द मन्द मुस्कान तुम्हारी
मुख पर लगा गुलाल है
नैनों से नैना टकराये
दिल में मचा धमाल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
बोल तुम्हारे मिश्री जैसे
मुखड़ा कोमल लाल है
अंग अंग कुंदन सा दमके
लगा सोलवाँ साल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
खूब बरसते बादल आकर
मनवा अब बेहाल है
मधुरस टपके अधरों से जब
लगता बहुत कमाल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
रूप तुम्हारा खिला कँवल है
हिरनी जैसी चाल है
संजय कुमार गिरि
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-7-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2679 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बनाने वाले ने उस दिन सिर्फ इसे ही घड़ा होगा, लगता है !
जवाब देंहटाएंwaah waah ....kya kah diya
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