सारांश:
कभी कभी ख़ामोश हो जाता, शब्द।
नजरें और चेहरे से तब,
पढा जाता, शब्द।
संभाल कर बोला जाता, शब्द।
औषधी से तेज और,
बारूद से घातक,
काम कर जाता, शब्द।
बस ताकत-ए-शब्द को व्यक्त करती
मेरी ये रचना:
राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
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शब्द की हुँकार
चाकू ख़ंजर तीर, तलवार।
सबकी अपनी तेज है, धार।
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इनमें लग गयी होड़ एक, बार।
कौन करे सबसे तेज,
घाव गंभीर, हज़ार।
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फिर जैसे ही ये सब,
वार करने को हुवे, तैयार।
तभी एक शब्द ने भरी, हुँकार।
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पलक झपकते ही राजेन्द्र,
दिल के टुकड़े,
वो कर गया, हज़ार।
चाकू ख़ंजर तीर तलवार,
शब्द के आगे,
सब हो गए, लाचार।
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राजेन्द्र से सुन लो सभी,
अब एक बात, काम की।
प्रेरणा है ये प्रभु श्री, राम की।
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शब्द संभाले बोलिये,
कह गए दास, कबीर।
शब्द चले तीर से तेज,
घाव करे राजेन्द्र, गंभीर।
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शब्द ऐसा बोलिये,
जो औरों को भी, भाय।
शब्द जो निकले मुँह से,
वो वापस नहीं, आय।
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शब्द सोच कर बोलिये,
शब्द ही बैर, बढ़ाय।
शब्द जोड़े टूटे दिल,
ये कटुता ख़त्म कर, जाय।
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शब्द ना ऐसा बोलिये,
जिसे बोले बाद, पछताय।
शब्द वो किस काम का,
जो बुजुर्गों का मान, घटाय।
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शब्द एक दोस्ती का,
जो परायों को, अपनाय।
शब्द दूजा दुश्मनी का,
अपनों को भी,
राजेन्द्र, पराया कर, जाय।
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शब्द ना ऐसा बोलिये,
जो बिगाड़े बनती, बात।
शब्द से पता चलती है,
राजेन्द्र, इंसान की, औक़ात।
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शब्द नजरों से गिराता,
शब्द से बढ़ता, मान।
शब्द से ही होती है,
भले बुरे इंसान की, पहचान।
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औषधी से तेज राजेन्द्र,
और बारूद से घातक,
शब्द कर जाता, काम।
आज़ के लिए इतना ही,
बोलो जय सिया, राम।
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कविता: राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता
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