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शनिवार, 24 नवंबर 2018

चन्द माहिया : क़िस्त 56

चन्द माहिया : क़िस्त 52

1
जब जब घिरते बादल
प्यासी धरती क्यों
होने लगती पागल ?

:2:
भूले से कभी आते
मेरी दुनिया में
रिश्ता तो निभा जाते

:3:
कुछ मन की उलझन है
धुँधला है जब तक
यह मन का दरपन है

:4:
जब छोड़ के जाना था
क्यों आए थे तुम?
क्या दिल बहलाना था?

:5:
लगनी होती ,लगती
आग मुहब्बत की
ताउम्र नही बुझती


-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

एक ग़ज़ल : वक़्त सब एक सा नहीं---

एक ग़ज़ल :

वक़्त सब एक सा  नहीं होता
रंज-ओ-ग़म देरपा नहीं होता

आदमी है,गुनाह  लाज़िम है
आदमी तो ख़ुदा  नहीं  होता

एक ही रास्ते से जाना  है
और फिर लौटना नहीं होता

किस ज़माने की बात करते हो
कौन अब बेवफ़ा नहीं  होता ?

हुक्म-ए-ज़ाहिद पे बात क्या करिए
इश्क़ क्या है - पता नहीं  होता

लाख माना कि इक भरम है मगर
नक़्श दिल से जुदा नहीं होता

बेख़ुदी में कहाँ ख़ुदी ’आनन’
काश , उन से मिला नहीं होता

-आनन्द.पाठक- 

बुधवार, 7 नवंबर 2018

Laxmirangam: अतिथि अपने घर के

Laxmirangam: अतिथि अपने घर के: अतिथि अपने घर के बुजुर्ग अम्मा और बाबूजी साथ हैं,  उन्हे सेवा की जरूरत है, घर में एक कमरा उनके लिए ही है  और दूसरा हमारे पा...

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शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

एक ग़ज़ल : एक समन्दर मेरे अन्दर---

एक ग़ज़ल : एक समन्दर ,मेरे अन्दर...

एक  समन्दर ,  मेरे  अन्दर
शोर-ए-तलातुम बाहर भीतर

एक तेरा ग़म  पहले   से ही
और ज़माने का ग़म उस पर

तेरे होने का ये तसव्वुर
तेरे होने से है बरतर

चाहे जितना दूर रहूँ  मैं
यादें आती रहतीं अकसर

एक अगन सुलगी  रहती है
वस्ल-ए-सनम की, दिल के अन्दर

प्यास अधूरी हर इन्सां  की 
प्यासा रहता है जीवन भर

मुझको ही अब जाना  होगा   
वो तो रहा आने  से ज़मीं पर 

सोन चिरैया  उड़ जायेगी     
रह जायेगी खाक बदन पर   

सबके अपने  अपने ग़म हैं
सब से मिलना ’आनन’ हँस कर

-आनन्द पाठक-