एक ग़ज़ल :
वक़्त सब एक सा नहीं होता
रंज-ओ-ग़म देरपा नहीं होता
आदमी है,गुनाह लाज़िम है
आदमी तो ख़ुदा नहीं होता
एक ही रास्ते से जाना है
और फिर लौटना नहीं होता
किस ज़माने की बात करते हो
कौन अब बेवफ़ा नहीं होता ?
हुक्म-ए-ज़ाहिद पे बात क्या करिए
इश्क़ क्या है - पता नहीं होता
लाख माना कि इक भरम है मगर
नक़्श दिल से जुदा नहीं होता
बेख़ुदी में कहाँ ख़ुदी ’आनन’
काश , उन से मिला नहीं होता
-आनन्द.पाठक-
वक़्त सब एक सा नहीं होता
रंज-ओ-ग़म देरपा नहीं होता
आदमी है,गुनाह लाज़िम है
आदमी तो ख़ुदा नहीं होता
एक ही रास्ते से जाना है
और फिर लौटना नहीं होता
किस ज़माने की बात करते हो
कौन अब बेवफ़ा नहीं होता ?
हुक्म-ए-ज़ाहिद पे बात क्या करिए
इश्क़ क्या है - पता नहीं होता
लाख माना कि इक भरम है मगर
नक़्श दिल से जुदा नहीं होता
बेख़ुदी में कहाँ ख़ुदी ’आनन’
काश , उन से मिला नहीं होता
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-11-2018) को "किसी कच्ची मिट्टी को लपेटिये जनाब" (चर्चा अंक-3159) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी धन्यवाद आप का
हटाएंसादर
एक ग़ज़ल :
जवाब देंहटाएंवक़्त सब एक सा नहीं होता
रंज-ओ-ग़म देरपा नहीं होता
आदमी है,गुनाह लाज़िम है
आदमी तो ख़ुदा नहीं होता
एक ही रास्ते से जाना है
और फिर लौटना नहीं होता
किस ज़माने की बात करते हो
कौन अब बेवफ़ा नहीं होता ?
हुक्म-ए-ज़ाहिद पे बात क्या करिए
इश्क़ क्या है - पता नहीं होता
लाख माना कि इक भरम है मगर
नक़्श दिल से जुदा नहीं होता
बेख़ुदी में कहाँ ख़ुदी ’आनन’
काश , उन से मिला नहीं होता
-आनन्द.पाठक-
कभी अच्छा, बुरा कभी होता
वक्त एक सा नहीं होता।
संग का रंग चढ़ा करता है ,
आदमी अच्छा ,बुरा नहीं होता।
बढ़िया अशआर कहे हैं जनाब आनंद साहब ने।
जैश्रीकृष्णभाई !
jaishrikrishnabhai.blogspot.com
जी बहुत बहुत धन्यवाद आप का
हटाएंबहुत खूब आदरणीय 👌
जवाब देंहटाएंJi Dhanyvaad aap kaa
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