छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कवि व पत्रकार स्वर्गीय श्यामलाल चतुर्वेदी का 7 दिसंबर 2018 की सुबह बिलासपुर स्थित एक निजी चिकित्सालय में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। उनका जीवन महात्मा गांधी के आदर्शों से पूरी तरह से प्रभावित रहा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने 13 वर्ष की उम्र से ही खादी पहनना शुरू कर दिया था। उन्होंने स्वाध्याय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। स्वर्गीय पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी ने छत्तीसगढ़ की आंचलिक पत्रकारिता में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह ‘भोलवा भोलाराम बनिस’ और कविता संग्रह ‘पर्रा भर लाई’ को छत्तीसगढ़ के आंचलिक साहित्य की महत्वपूर्ण कृतियों में गिना जाता है। पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी को अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य एवं लोक कला मंच भाटापारा द्वारा प्रदत्त ‘हरिठाकुर सम्मान’ वर्ष 2003 में सृजन सम्मान संस्था रायपुर द्वारा ‘हिन्दी गौरव सम्मान’ सहित पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की संस्था बख्शी सृजन पीठ द्वारा प्रदत्त ‘साधना सम्मान’ भी शामिल है।
पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषाओं के विद्वान लेखक, चिन्तक और संवेदनशील कवि थे, जिन्होंने लगभग सात दशकों तक अपनी रचनाओं से प्रदेश के लोक साहित्य और यहां की लोक संस्कृति के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास में पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के इस महत्वपूर्ण योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 02 अप्रैल 2018 को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में आयोजित समारोह में पंडित चतुर्वेदी को पद्मश्री अलंकरण से नवाजा था। पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म 20 फरवरी 1926 को तत्कालीन बिलासपुर जिले के अकलतरा के पास ग्राम कोटमी सोनार में हुआ था। वह कोटमी सोनार ग्राम पंचायत के सरपंच भी रह चुके थे। उन्होंने लम्बे समय तक कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के बिलासपुर जिला संवाददाता के रूप में भी काम किया। पंडित चतुर्वेदी ने सरपंच के रूप में अपनी ग्राम पंचायत में जन सहयोग से शराब बंदी सहित विकास के कई प्रमुख कार्य सफलता पूर्वक सम्पादित किए थे। इसके फलस्वरूप उनकी ग्राम पंचायत को राज्य शासन द्वारा तत्कालीन अविभाजित बिलासपुर जिले सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत घोषित किया गया था।
पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषाओं के विद्वान लेखक, चिन्तक और संवेदनशील कवि थे, जिन्होंने लगभग सात दशकों तक अपनी रचनाओं से प्रदेश के लोक साहित्य और यहां की लोक संस्कृति के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास में पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के इस महत्वपूर्ण योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 02 अप्रैल 2018 को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में आयोजित समारोह में पंडित चतुर्वेदी को पद्मश्री अलंकरण से नवाजा था। पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म 20 फरवरी 1926 को तत्कालीन बिलासपुर जिले के अकलतरा के पास ग्राम कोटमी सोनार में हुआ था। वह कोटमी सोनार ग्राम पंचायत के सरपंच भी रह चुके थे। उन्होंने लम्बे समय तक कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के बिलासपुर जिला संवाददाता के रूप में भी काम किया। पंडित चतुर्वेदी ने सरपंच के रूप में अपनी ग्राम पंचायत में जन सहयोग से शराब बंदी सहित विकास के कई प्रमुख कार्य सफलता पूर्वक सम्पादित किए थे। इसके फलस्वरूप उनकी ग्राम पंचायत को राज्य शासन द्वारा तत्कालीन अविभाजित बिलासपुर जिले सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत घोषित किया गया था।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-12-2018) को "उभरेगी नई तस्वीर " (चर्चा अंक-3181) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी