लघुकथा-सात
1 जनवरी 20..
आतंकवादियों ने सेना की एक बस पर अचानक हमला कर दिया. बस
में एक भी सैनिक नहीं था. बस में स्कूल के कुछ बच्चे पिकनिक से लौट रहे थे. एक
बच्चा मारा गया, पाँच घायल हुए.
सारा नगर आक्रोश और उत्तेजना से उबल पड़ा. लोग सड़कों पर
उतर आये; पहले एक नगर में, फिर कई नगरों में. हर कोई सरकार को कोस रहा था. हर
समाचार पत्र और हर न्यूज़ चैनल भड़का हुआ था.
1 फरवरी 20..
उसी नगर में एक स्कूल बस बहुत तेज़ गति से चल रही थी. ट्रैफिक
सिग्नल लाल हो गया. पर ड्राईवर ने बस को ज़रा भी धीमे नहीं किया और ट्रैफिक सिग्नल
की अनदेखी कर बस चलाता रहा. बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई. छह बच्चे मारे गये, पन्द्रह
घायल हुए.
न लोग उत्तेजित हुए, न भड़के. समाचार पत्रों और न्यूज़
चैनलों के लिए तो यह कोई समाचार ही न था.
ऐसा कुछ होता भी क्यों? जिस देश में चार सौ से अधिक लोग
हर दिन सड़कों पर मरते हैं, वहां सड़क-दुर्घटना में मरे छह बच्चों के लिये कौन रोये?
(एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं
वाहन-चालकों की गलती के कारण होती हैं)
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (14-01-2019) को "उड़ती हुई पतंग" (चर्चा अंक-3216) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
लोहड़ीःमकरक संक्रान्ति (उत्तरायणी) की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह चुनिंदा विरोध की बानगी है अरोरा जी
जवाब देंहटाएं