एक ग़ज़ल : मेरे जानाँ --
मेरे जानाँ ! न आजमा मुझको
जुर्म किसने किया ,सज़ा मुझको
जिन्दगी तू ख़फ़ा ख़फ़ा क्यूँ है ?
क्या है मेरी ख़ता ,बता मुझको
यूँ तो कोई नज़र नहीं आता
कौन फिर दे रहा सदा मुझको
नासबूरी की इंतिहा क्या है
ज़िन्दगी तू ही अब बता मुझको
होश फिर उम्र भर नहीं आए
जल्वाअपना कभी दिखा मुझको
मैं निगाहें मिला सकूँ उनसे
इतनी तौफ़ीक़ दे ख़ुदा मुझको
उनका होना भी है बहुत ’आनन’
देता जीने का हौसला मुझको
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
नासबूरी =अधीरता ,ना सब्री
तौफ़ीक़ =शक्ति,सामर्थ्य
मेरे जानाँ ! न आजमा मुझको
जुर्म किसने किया ,सज़ा मुझको
जिन्दगी तू ख़फ़ा ख़फ़ा क्यूँ है ?
क्या है मेरी ख़ता ,बता मुझको
यूँ तो कोई नज़र नहीं आता
कौन फिर दे रहा सदा मुझको
नासबूरी की इंतिहा क्या है
ज़िन्दगी तू ही अब बता मुझको
होश फिर उम्र भर नहीं आए
जल्वाअपना कभी दिखा मुझको
मैं निगाहें मिला सकूँ उनसे
इतनी तौफ़ीक़ दे ख़ुदा मुझको
उनका होना भी है बहुत ’आनन’
देता जीने का हौसला मुझको
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
नासबूरी =अधीरता ,ना सब्री
तौफ़ीक़ =शक्ति,सामर्थ्य
लाजवाब ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंजी.आभार आप का
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०२-०५-२०२०) को "मजदूर दिवस"(चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
अनिता जी--आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस ग़ज़ल को चर्चा में शामिल करने के लिए
हटाएंसादर
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है, बहुत खूब...👌
जवाब देंहटाएंजी --मम्नून हूँ आप का
हटाएंतालिब-ए-दुआ’
बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंजी.धन्यवाद आप का
हटाएंसादर
लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंवाह!!!
Ji Dhanyvaad Aap ka=
हटाएंsaadar
उम्दा और बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं