(शारदी छंद)
चले चलो पथिक।
बिना थके रथिक।।
थमे नहीं चरण।
भले हुवे मरण।।
सुहावना सफर।
लुभावनी डगर।।
बढ़ा मिलाप चल।
सदैव हो अटल।।
रहो सदा सजग।
उठा विचार पग।।
तुझे लगे न डर।
रहो न मौन धर।।
प्रसस्त है गगन।
उड़ो महान बन।।
समृद्ध हो वतन।
रखो यही लगन।।
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*शारदी छंद* विधान
"जभाल" वर्ण धर।
सु'शारदी' मुखर।।
"जभाल" = जगण भगण लघु
।2। 2।। । =7 वर्ण, 4चरण दो दो सम तुकान्त
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
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