डायरी के पन्नों से---
एक ग़ज़ल : हमें मालूम है संसद में ---
हमें मालूम है संसद में कल फिर क्या हुआ होगा,
कि हर मुद्दा सियासी ’वोट’ पर तौला गया होगा ।
वो,जिनके थे मकाँ वातानुकूलित संग मरमर के,
हमारी झोपड़ी के नाम हंगामा किया होगा ।
जहाँ भी बात मर्यादा की या तहजीब की आई,
बहस करते हुए वो गालियाँ भी दे रहा होगा ।
बहस होनी कभी जो थी किसी गम्भीर मुद्दे पर,
वहीं संसद में ’मुर्दाबाद’ का नारा लगा होगा ।
चलें होंगे कभी चर्चे जो रोटी पर ,ग़रीबी पर,
दिखा कर आंकड़ों का खेल, सीना तन गया होगा ।
कभी मण्डल-कमण्डल पर, कभी ’मस्जिद पे, मन्दिर पर
इन्हीं के नाम बरसों से तमाशा हो रहा होगा ।
खड़े है कटघरे में हम , लगे आरोप ’आनन’ पर,
कि शायद भूल से हम ने कहीं सच कह दिया होगा ।
-आनन्द.पाठक-
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद --सादर
हटाएंयथार्थ को बयां करती बेहतरीन गजल सर
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