दो समितियाँ
हमारे मोहल्ले में दो
समितियां हैं, एक समिति ने मानवों की कुत्तों से रक्षा का
बीड़ा उठा रखा है तो दूसरी ने कुत्तों की मानवों से रक्षा का. दोनों
समितियों की जन्मगाथा बहुत रोचक है.
सुखीलाल हमारे मोहल्ले के उन
जाने माने व्यक्तियों में से एक हैं जो समाज की हर समस्या पर अपनी समझ और बुद्धि
का प्रकाश व प्रभाव डालना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. कहीं
पिता-पुत्र
में अनबन हो या म्युनिसिपेलिटी के चुनाव, सफ़ाई कर्मचारियों की हड़ताल
हो या दहेज़ का अभिशाप, हर जगह हर समस्या का समाधान ले कर उपस्थित हो
जाते हैं हमारे सुखीलाला.
इन्हीं सुखीलाला ने एक दिन
कुत्ता विरोधी समिति के गठन का बीड़ा उठा लिया. हुआ
यूँ कि एक दिन उनकी चौदह वर्ष की बालिका पड़ोस की मौसी जी से एक कटोरा चीनी उधार
लेने गई. लगभग सभी पड़ोसियों से उनका ऐसा लेन-देन लगा
ही रहता है, वह अलग बात है कि लेना अधिक और देना कम होता है. किसी
घर से कटोरा भर चीनी, किसी घर से डिब्बा भर आटा, किसी
घर से....खैर
वह एक अलग किस्सा है, कभी उसकी चर्चा करेंगे. उस
दिन चीनी की आवश्यकता थी, उनकी श्रीमती जी ने अपनी तीसरी नंबर की बालिका
को पड़ोस की बिमला मौसी के घर भेजा.
बालिका चीनी की कटोरी हाथ
में लिए घर लौट रही थी कि न जाने कहाँ से एक कुत्ता आ धमका, न
जाने कि उसे क्या सूझा और उस बालिका पर झपटा. इस
अप्रत्याशित आफत से बालिका इतना घबरा गई कि एक दिल दहला देने वाली चीख उसके मुख से
निकल गई और गली के एक छोर से दूसरे छोर तक फ़ैल गई. गली
में रहने वाले लोग सन्न रह गये. कई खिड़कियाँ दरवाज़े एक साथ खुल गये. कई
चेहरे अलग-अलग भाव लिये खिड़कियाँ , दरवाजों
से बाहर आये. सबने देखा कि सुखीलाल की कन्या बदहवास भागी जा
रही है और एक कुत्ता उसके पीछे भाग रहा है. दृश्य अत्यंत मार्मिक, सबके
दिल को दहला देने वाला था.
तभी अपेक्षानुसार सुखीलाल जी
वहां आ पहुंचे. पर इससे पहले कि अपनी समझ व ज्ञान का प्रकाश इस
घटना पर डाल पाते, बालिका उनसे आ टकराई. एक
घबराई, सहमी
सी हिरणी सामान वह अपने पिता के अंक में समा गई. उसकी
सांस धौंकनी के सामान चल रही थी. कटोरी और चीनी का कहीं अता-पता न
था. आश्चर्य, भय और
क्रोध में डूबे सुखी लाला ने उसी क्षण प्रण ले लिया कि अपने नगर को कुत्तों से
छुटकारा दिला कर ही दम लेंगे.
प्रकृति के उस नियम का तो आप
को भी ज्ञान होगा जिस नियम के आधार पर इस संसार में जहां राजा होता है वहां रंक भी
होते हैं, जहां दुःख होते हैं वहां सुख भी होता है, जहां
रात होती वहां दिन भी होता है.
हर भाव व वस्तु का सृजन अपने
साथ ही विरोधी भाव व वस्तु को जन्म दे देता है. प्रकृति
के इस अटल नियम से सुखीलाल और उनकी समिति कैसे मुक्त रहते?
जिस दिन उन्होंने मानवों की
कुत्तों से रक्षा करने का प्रण लिया उसी दिन कुत्तों पर हो रहे अत्याचार ने
चुन्नीलाल के हृदय में एक तूफ़ान पैदा कर दिया था.
कुछ आवारा बच्चों द्वारा
पिटा एक पिल्ला चुन्नीलाल के सामने से गुज़र गया और उनके समक्ष कई प्रश्न खड़े कर
गया. क्या
आवारा कुत्ते और उनके पिल्ले इस समाज में इस तरह ही एक उपेक्षित जीवन जीते रहेंगे? क्या
मनुष्य का कोई कर्तव्य नहीं है इस प्राणी की ओर जो पाषाण युग से उसका साथी रहा है? क्या
कोठियों में पलते कुत्ते ही सुख के अधिकारी हैं? क्या
आवारा कुत्तों को सदा अत्याचार ही सहना होगा?
चुन्नीलाल ने आवारा बच्चों
को डपट दिया और एक-दो बच्चों को चपत रसीद कर उस आवारा पिल्ले को
उन आवारा बच्चों के अत्याचार से मुक्त कराया. उसी
दिन, म्युनिसिपेलिटी
के दो चुनाव जीते पर पिछ्ला चुनाव हारे, चुन्नीलाल ने आवारा कुत्तों
की मानवों से रक्षा का बीड़ा उठा लिया. आनन-फ़ानन
में चुन्नीलाल ने एक समिति का गठन कर दिया.
दोनों समितियों ने बड़े
उत्साह और जोश के साथ अपना कार्य आरंभ किया. सुखीलाल की दौड़ धूप के
फलस्वरूप म्युनिसिपेलिटी वाले कुछ आवारा कुत्तों को पकड़ कर ले गये. सारे नगर
में सनसनी फ़ैल गयी. इतिहास में ऐसा कभी न हुआ था. अब तक
आदमी, गाय, भैंस, गधे, कुत्ते
और अन्य प्राणी बड़े मेलजोल के साथ यहाँ रहते आये थे. कुत्तों
का पकड़ा जाना एक आश्चर्यजनक घटना थी.
सीना तान, सुखीलाल
एक गली से दूसरी गली घूम रहे थे. उनकी तीसरे नंबर की बालिका
भी खुशी से फूली न समा रही थी.
उधर अभी तक कुछ आवारा
कुत्तों को आवारा बच्चों के अत्याचार से बचाने के अतिरिक्त कोई भी सफलता चुन्नीलाल
की समिति अर्जित न कर पायी थी. आवारा कुत्तों के भविष्य को
लेकर कुछ गोष्ठियां भी आयोजित की गयीं थीं और इस समस्या पर गंभीर चर्चा भी हुई थी. पर
अभी तक कोई ऐसी महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली थी जो की अखबारों की सूर्खी बन पाती या
जिस को लेकर किसी टी वी चैनल पर गरमा-गरम बहस हो पाती. अब
सुखीलाल की दौड़-धूप ने उन्हें एक स्वर्णिम अवसर दे दिया था.
म्युनिसिपेलिटी ने कई आवारा
कुत्तों को पकड़ लिया था. उन्होंने तुरंत एक आंदोलन छेड़ दिया. उनकी
मांग थी की इन असहाय कुत्तों को तुरंत छोड़ दिया जाये और उन्हें अपने-अपने
मोहल्लों में पुनः स्थापित किया जाये.
सुखीलाल ने सुना तो गुस्से
से कांप उठे. लम्बी प्रतीक्षा और अथक प्रयास के बाद
उनकी प्रतिज्ञा पूरी होने वाली थी कि
चुन्नीलाल ने अड़ंगा लगा दिया था. उन्होंने अपना आंदोलन तेज़ कर
दिया. चुन्नीलाल
भी पीछे हटने वाले न थे. उन्होंने भी अपनी पूरी शक्ति अपने आंदोलन में
झोंक दी.
दोनों आंदोलनों ने प्रचंड
रूप ले लिया. आंदोलनों के वेग से सारा नगर कंपकंपा गया. म्युनिसिपेलिटी
के चेयरमैन घबरा गये. ऐसा तो पहले कभी न हुआ था. क्या
करें, क्या
न करें कुछ समझ न पा रहे थे. मानवों से कुत्तों की
सुरक्षा का सोचें कि कुत्तों से मानवों की सुरक्षा का?
जब चेयरमैन को कुछ न सूझा तो
उन्होंने दोनों समितियों के अध्यक्षों को बुलाया. खूब
सोच-विचार
हुआ. खूब
तर्क-वितर्क
हुआ. कोई
भी ज़रा भी पीछे हटने को तैयार न था. कोई रास्ता दिखाई न दे रहा
था. हार
कर चेयरमैन महोदय ने कहा, “क्यों न देश के दूसरे नगरों में आवरा कुत्तों
से निपटने की प्रचलित प्रथा की जानकारी प्राप्त की जाये? मैं
आज ही एक आदेश जारी करता हूँ. सुखीलाल जी आप देश भ्रमण कर
यह पता लगाओ कि अन्य नगरों में कुत्तों से मानवों की सुरक्षा का क्या-क्या
प्रबंध किये जाते हैं. चुन्नीलाल जी आप यह जानकारी इक्कठी करो की अलग-अलग
नगरों में मानवों के अत्याचारों से कुत्तों को बचाने के क्या-क्या
तरीके अपनाये गये हैं.”
सुखीलाल और चुन्नीलाल ने
सुना तो प्रसन्नता से फूले न समाये. दोनों को न तो तनिक सा आभास न
था कि उनके आंदोलनों का इतना आश्चर्यजनक परिणाम निकलेगा. दोनों
ने चेयरमैन का बार-बार धन्यवाद किया.
“पर उन कुत्तों का क्या होगा
जिन्हें पकड़ कर रखा गया है?” उठते-उठते
चुन्नीलाल ने पूछा.
“उन्हें हरगिज़ न छोड़ा जाये,”सुखीलाल
ने आवेश से कहा.
“उनके साथ कोई भी अत्याचार हम
सहन न करेंगे,” चुन्नीलाल ने भी जोर दे कर कहा.
चेयरमैन असमंजस में पड़ गये. कुछ
सोच कर बोले, “जब तक कोई निर्णय नहीं हो जाता तब तक उन
कुत्तों को अनाथालय में रख देंगे. कुछ बच्चों को वहां से बाहर
निकाल देंगे और कुत्तों के लिए जगह बना लेंगे. बच्चों
पर होने वाला जो खर्चा बच जायेगा उसे
कुत्तों पर खर्च कर देंगे. इस तरह न कुत्तों पर कोई
अत्याचार होगा न ही किसी को कुत्तों का कोई भय रहेगा.”
“यह उत्तम विचार है,” सुखीलाल
और चुन्नीलाल एक साथ बोले.
आजकल सुखीलाल और चुन्नीलाल
देश भ्रमण पर हैं. परदेस में न जाने कब कैसी विपत्ता आन पड़े, यह
सोच दोनों एक साथ ही यात्रा कर रहे हैं.
अनाथालय से निकाले गये बच्चे, अनाथालय
में बंद आवारा कुत्ते, दोनों समितियों के सभी सदस्य उनके लौटने की
प्रतीक्षा कर रहे हैं.