[दीपावली की पूर्व सन्ध्या पर ------
एक गीत : दीपावली पर
आज दीपावली, ज्योति का पर्व है
दीप की मालिका हम सजाते चलें ।
आज मिल कर सजाएँ नई अल्पना
झूमने नाचने का करें सिलसिला,
पर्व ख़ुशियों का है और उल्लास का
भूल जाएँ जो कोई हो शिकवा, गिला ।
मन बँटा हो भले, रोशनी कब बँटी !
प्यार का दीप दिल में जलाते चलें ।
धर्म के नाम पर व्यर्थ उन्माद में
चेतना मर गई, भावना मर गई ,
मन के अन्दर की सब खिड़कियाँ बन्द है
उनके कमरे में कितनी घुटन भर गई ।
सोच नफ़रत भरी है, जहर भर गया
इन अँधेरों को पहले मिटाते चलें ।
झोंपड़ी का अँधेरा करें दूर हम
झुग्गियों बस्तियों में जला कर दिए,
एक दिन चाँदनी भी उतर आएगी
आदमी जो जिए दूसरों के लिए ।
अब अँधेरों में कोई न भटके कहीं
सत्य की राह क्या है ? दिखाते चलें ।
आज दुनिया खड़ी ले के परमाणु बम्ब
ख़ौफ़ फैला फ़िज़ां में जिधर देखिए,
लोग हाथों में पत्थर लिए हैं खड़े
कब तलक बच रहे अपना सर, देखिए ।
विश्व में हो अमन, चैन हो, प्रेम हो
बुद्ध के सीख- संदेश गाते चलें ।
आज दीपावली,ज्योति का पर्व है। दीप की मालिका हम सजाते चलें।
-आनन्द.पाठक-
बहुत सुंदर
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