प्रतिशोध-एक कहानी
होटल में प्रवेश करते ही दिनेश को अमर दिखाई
दिया. उनकी नज़रें मिलीं पर दोनों ने ऐसा व्यवहार किया कि जैसे वह एक दूसरे को जानते
नहीं थे. परन्तु अधिक देर तक वह एक दूसरे की नकार नहीं पाये.
‘बहुत समय हो गया.’
‘हाँ, दस साल, पाँच महीने और बाईस दिन.’
‘तुम ने तो दिन भी गिन रखे हैं?’
‘क्यों? तुम ने नहीं गिन रखे?’
‘क्या कभी जय से भेंट हुई? या बि......’
‘कभी नहीं. तुम्हारी?’
‘कभी नहीं.’
लेकिन दोनों को ही पता न था कि जय और बिन्नी
भी उसी होटल में रुके हुए थे. उन दोनों ने सुबह दस बजे उसी होटल में चेक-इन किया
था. वैसे जय और बिन्नी की भी अभी तक आपस में भेंट न हुई थी.
दस वर्षों से चारों एक-दूसरे से न कभी मिले
थे. किसी प्रकार को कोई संपर्क उनके बीच नहीं था. हर एक के लिए जैसे अन्य तीनों का
कोई अस्तित्व ही नहीं था.
होटल के ‘बार’ में चारों इकट्ठे हुए. उनका
लगभग एक साथ ‘बार’ में आना सुनियोजित नहीं था. ‘बार’ में थोड़ा समय बिताने के लिये चारों
अलग-अलग ही आये थे और हर एक दूसरों को देख कर सकपका गया था.
अनचाहे ही वह एक साथ बैठ गये. अतीत की
परछाइयों से घिरे हुए वह एक साथ बैठ तो गये थे, पर आपस में बातचीत करने के लिए कोई
इच्छुक न था.
कितनी देर तक इस तरह एक-दूसरे को नकार कर वह
एक साथ बैठ सकते थे? बातचीत शुरू हुई, पर
बेमतलब की, एक दूसरे से आँखें चुराते हुए. अतीत के विषय में किसी ने कोई बात न की.
चारों में से किसी ने भी यह जानने का प्रयास न किया कि कौन कहाँ था, क्या कर रहा
था और किस कारण उस होटल में रुका हुआ था.
अचानक अमर उठ खड़ा हुआ. उसने कहा कि वह बहुत
थक गया था, रूम में जाकर वह विश्राम करना चाहता था. वह पलटा.
तभी पास से गुज़रती एक लड़की लड़खड़ा गई. इससे
पहले कि वह गिरती उसने हाथ बढ़ा कर अमर का हाथ थाम लिया. अगर वह संभल न पाती तो
शायद बुरी तरह उनकी मेज़ पर ही आ गिरती. शायद उसने थोड़ी अधिक शराब पी ली थी.
‘धन्यवाद, आपने मेरी लाज रख ली. पर क्या आप सुंदर
लड़कियों को गिरने से अकसर बचाते हैं?’ उसने अमर की आँखों में देखते हुए कहा. अमर हड़बड़ा
गया, उस ने आँखें नीची कर लीं.
‘अगर यह कोई बैचलर पार्टी नहीं है तो क्या
मैं आपके साथ बैठ जाऊं?’
‘यह तो हमारा सौभाग्य.......’ बिन्नी एकदम बोला
पर फिर कुछ सोच कर ठिठक गया.
लड़की ने उनकी झिझक की बिलकुल परवाह नहीं की
और बड़े विश्वास के साथ वेटर से उसके लिए कुर्सी लाने का संकेत किया. वह उनके साथ बैठ
गई.
चारों ने चोरी-चोरी एक दूसरे को देखा. हर एक
के मन में संदेह की हल्की-हल्की लहरें
उठने लगी थीं. हाँ एक बात शुरू करने में हिचकिचा रहा था. लेकिन उनकी रहस्यमय
चुप्पी से बेखबर वह लड़की बातें किये जा रही थी. उनके निमंत्रण की प्रतीक्षा किये
बिना ही उसने ड्रिंक मंगवा लिया था.
‘आप लोग क्या पहली बार मिल रहे हो? मुझे तो
लगा था कि आप सब पुराने मित्र हो? शायद स्कूल-कॉलेज के सहपाठी? नहीं?’
किसी ने उसकी बात का उत्तर नहीं दिया.
चुपचाप चारों अपने-अपने ड्रिंक में व्यस्त हो गये.
धीरे-धीरे तनाव कम होने लगा. उनके होंठो पर
मुस्कान थिरकने लगी. उन्होंने देखा की लड़की जितनी सुंदर थी उतनी ही हंसमुख भी थी.
लेकिन उसे देख कर दिनेश और अमर को कुछ घबराहट सी भी हो रही थी. न जाने क्यों वह
लड़की उन्हें किसी की याद दिला रही थी.
या तो शराब का नशा था या फिर उस लड़की ने
उन्हें इतना सम्मोहित कर दिया था कि वह चारों अनायास बीते दिनों की बात करने लगे
थे.
‘लेकिन इन दस वर्षों में आप कभी आपस में
नहीं मिले?’
‘नहीं, हमारी पिछली मुलाक़ात दस वर्ष पाँच
महीने और बाईस दिन पहले हुई थी,’ दिनेश ने बिना सोचे ही कहा. अगले ही पल वह सहम
गया.
‘उसी दिन न जिस दिन वह नीली आँखों वाली लड़की
की मृत्यु हुई थी?’
उसके शब्दों ने उन्हें चौंका दिया.
‘या फिर तुम सब ने मिल कर उसे मार डाला था?’
लड़की के शब्द छुरी समान उनके सीने में चुभ गये
‘नहीं, वह तो एक दुर्घटना थी. एक दुर्घटना! वह....वह
अपनी इच्छा से आई थी..... हम उसकी हत्या क्यों.......?’ दिनेश घबरा कर ज़रा ऊंची
आवाज़ में बोला. लेकिन अगले ही पल उसे अहसास हुआ कि उसने अनचाहे ही बहुत कुछ कह
डाला था. वह एक भयानक भूल कर बैठा था.
‘वह दुर्घटना नहीं थी और यह बात तुम सब
अच्छी तरह जानते हो,’ लड़की की आँखें किसी शेरनी समान चमक रही थीं.
जय ने इधर-उधर देखा. ‘बार’ लगभग खाली था.
उसने घड़ी देखी, बारह बजने वाले थे. इतना समय कैसे बीत गया. कहीं घड़ी खराब तो नहीं
हो गयी? उसका भय उसकी आँखों से छलकने लगी.
‘तुम कौन हो? उस लड़की को कैसे जानती हो?’ जय
ने लगभग धमकाते हुए पूछा.
‘तुम मुझे नहीं जानते? देखो मेरी ओर....ध्यान
से देखो. मैं वही लड़की हूँ जिसे तुम ने उस दिन मार डाला था. पर मैं बच गई थी. मैं मरी
नहीं थी. मैं बच गई थी, अपना प्रतिशोध लेने के लिए.’
उन्हें समझ न आया कि वह क्या कह रही थी.
आश्चर्यचकित से वह उसे घूरने लगे. तभी उन्हें अहसास हुआ कि वह डर से कांपने लगे थे.
‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता! तुम हमें मूर्ख
समझती हो!’
‘क्यों ऐसा नहीं हो सकता?’ लड़की की आँखें
क्रोध से जलने लगी थीं.
‘क्योंकि हमने उसकी लाश को भट्टी में जला
दिया था, और ...और.... और इस बात के लिए मैंने सदा अपने से घृणा की है,’ दिनेश ने बिना
रुके कहा और अपने आप में सिमट कर बैठ गया. उसकी सहमी हुई सिसकियाँ पूरे ‘बार’ में गूँज
रही थीं.
‘ऐसा भयानक काम तुम कैसे कर पाए?’ लड़की ने थरथराती
हुई हुई आवाज़ में कहा. उसकी आँखें भर आई
थीं.
‘तुम कौन हो?’ जय की आवाज़ कांप रही थी,
लेकिन उसकी आँखें भय और तिरस्कार से जल रही थीं.
‘मैं उस मृत लड़की की छोटी बहन हूँ. वर्षों
से मैं तुम लोगों को ढूँढ़ रही थी. तुम सब मेरे कारण ही यहाँ आये हो. यह कोन्फेरेंस
तो बस एक बहाना थी, तुम्हें एक साथ यहाँ इकट्ठा करने के लिए.’
वह चुप हो गयी और कई पलों तक कोई कुछ न
बोला. लड़की ने घूरते हुए उनको देखा.
‘यह सब मैं तुम लोगों से सुनना चाहती
थी......तुम सब को मारने से पहले.’
‘तुम ऐसा नहीं कर सकती!’ बिन्नी चिल्लाया.
‘क्या नहीं कर सकती?’
‘तुम हमें नहीं.....’
‘क्यों नहीं मार सकती? मैं तुम्हें मार सकती
हूँ......सच तो यह मैं तुम्हें मार चुकी हूँ!’
चारों स्तब्ध रह गये.
‘यह शराब जो तुम चारों यहाँ बैठे कर पी रहे
हो इसमें ज़हर मिला हुआ है....................’
चारों की आँखें पत्थरा सी गईं.
‘तुम सब मरोगे. अभी एकदम से नहीं, पर जल्दी
ही.’
लड़की ने एक कोने में बैठे हुए एक लड़के की ओर
देखा. बहुत धीरे से सिर हिला कर लड़के ने उसका अभिवादन किया.
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