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मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

 

सबहीं नचावत राम गोसाईं

भगवतीचरण वर्मा के एक उत्कृष्ट उपन्यास का शीर्षक है, सबहीं नचावत राम गोसाईं. पर मैं उस उपन्यास के विषय मैं कोई चर्चा नहीं करने वाला. मैं तो उन लोगों के विषय में बात करना चाहता हूँ जिन्हें आजकल राम गोसाई नचा रहे हैं.

अचानक पिछले कुछ वर्षो से देश में एक परिवर्तन आ गया है. कुछ लोग जन्युधारी हो गये हैं. कुछ लोग त्रिपुंडधारी हो गये हैं. गंगा स्नान कर रहे हैं.  मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं. जो लोग वर्षों तक ६ दिसम्बर १९९२ की बरसी मानते रहे और वह जो कहते थे कि राम काल्पनिक हैं, वह सब भी आज राम का गुणगान कर रहे हैं.

और दिल्ली के मुख्यमंत्री  का भी हृदय परिवर्तन हो गया लगता है. उन्होंने एक बार एक जन सभा में बताया था कि उनकी नानी ने कहा था, उनका राम किसी मस्जिद को तोड़ कर बने मंदिर में नहीं बस सकता. फिर कभी मुख्यमंत्री जी ने किसी सभा में कहा कि आई आई टी खरगपुर बनाने के बजाए अगर मंदिर बनाया होता तो क्या देश तरक्की करता. ऐसे और भी वक्तव्य हैं उनके जो यू ट्यूब पर देखे जा सकते है.

पर अब वह भी अयोध्या गये. क्या चुनाव आने वाले हैं?

सच में, सबहीं नचावत राम गोसाईं. 

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