चन्द माहिए
:1:
सब ग़म के भँवर में हैं,
कौन किसे पूछे?
सब अपने सफ़र में हैं।
;2:
अपना ही भला देखा,
कब देखी मैने,
अपनी लक्षमन रेखा?
:3:
माया की नगरी
में,
बाँधोंगे कब तक
इस धूप को गठरी
में ?
:4:
होठों पे तराने
हैं,
आँखों में बोलो
किसके अफ़साने
हैं ?
5
जो चाहे, दे
देना,
चाहत क्या मेरी
आँखों से समझ लेना।
-आनन्द.पाठक-
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (18 -10-2021 ) को 'श्वेत केश तजुर्बे के, काले केश उमंग' (चर्चा अंक 4221) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत धन्यवाद आप का
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सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आप का
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सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का
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